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________________ ४३५ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (४) पदमावती से लिए हुआ संग्राम-भारतवर्ष में अरिष्ट नामक नगर था। वहाँ बलदेव के मामा हिरण्यनाभ राज्य करते थे। उनके पद्मावती नाम की एक कन्या थी । सयानी होने पर राजा ने उसके स्वयंवर के लिए बलराम और कृष्ण आदि तथा अन्य सब राजाओं को आमंत्रित किया। स्वयंवर का निमंत्रण पाकर बलराम और श्रीकृष्ण तथा दूसरे अनेक राजकुमार अरिष्टनगर में पहुँचे। हिरण्यनाभ के एक बड़े भाई थे-रैवत । उनके रैवती, रामा, सीमा और बन्धुमती नाम की चार कन्याएँ थी। रैवत सांसारिक मोह जाल को छोड़ कर स्वपरकल्याण के हेतु अपने पिता के साथ ही बाईसवें तीर्थकर श्रीअरिष्टनेमि के चरणों में जैनेन्द्री मुनिदीक्षा धारण कर ली थी। वे दीक्षा लेने से पहले अपनी उक्त चारों पुत्रियों का विवाह बलराम के साथ करने के लिए कह गए थे । इधर पद्मावती के स्वयंवर में बड़े बड़े राजा-महाराजा आए हुए थे । वे सब युद्ध कुशल और तेजस्वी थे । पद्मावती ने उन सब राजाओं को छोड़ कर श्रीकृष्ण के गले में वरमाला डाल दी। इससे नीतिपालक सज्जन राजा तो अत्यन्त प्रसन्न हुए और कहने लगे--'विचारशील कन्या ने योग्य वर चुना है।" किन्तु जो दुर्बुद्धि,अविवेकी और अभिमानी राजा थे, वे अपने बल और ऐश्वर्य के मद में आकर श्रीकृष्ण से युद्ध करने को प्रस्तुत हो गए। उन्होंने वहां उपस्थित राजाओं को भड़काया--"ओ क्षत्रियवीर राजकुमारो ! तुम्हारे देखते ही देखते यह ग्वाला स्त्री-रत्न ले जा रहा है। 'शस्तं वस्तु हि भूभुजाम्' इस कहावत के अनुसार उत्तम वस्तु राजाओं के ही भोगने योग्य होती है । अतः देखते क्या हो ! उठो, सब मिल कर इससे लड़ो और यह कन्यारत्न इससे छुड़ा लो।" इस प्रकार उत्तेजित किये गए अविवकी राजा मिल कर श्री कृष्ण से लड़ने लगे । घोर युद्ध छिड़ गया। श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाई सिंहनाद करते हुए निर्भीक होकर शत्रुराजाओं से युद्ध करने लगे। वे जिधर पहुंचते उधर ही रणक्षेत्र योद्धाओं से खाली हो जाता। रणभूमि में खलबली और भगदड़ मच गई । 'जल्दी भागो,प्राण बचाओ ! ये मनुष्य नहीं; कोई देव या दानव प्रतीत होते हैं । ये तो हमें शस्त्र चलाने का अवसर ही नहीं देते। अभी यहाँ और पलक मारते ही और कहीं पहुँच जाते हैं।' इस प्रकार भय और आतंक से विह्वल होकर चिल्लाते हुए बहुत से प्राण बचा कर भागे । जो थोड़े से अभिमानी वहाँ ठटे रहे, वे यमलोक पहुँचा दिये गए । इस प्रकार बहुत शीघ्र ही उन्हें अनीति का फल मिल गया। वहाँ शान्ति हो गई। अन्त में, रैवती, रामा आदि (हिरण्यनाभ के बड़े भाई रेवत की) चारों कन्याओं का विवाह बड़ी धूमधाम से बलरामजी के साथ हुआ और पद्मावती का श्रीकृष्णजी के साथ । इस तरह वैवाहिक मंगलकार्य सम्पन्न होने पर बलराम और श्री
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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