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________________ ४३० श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र अत्यन्त दुःखी हुई कि भाई रुक्मी ने उसकी व पिताजी की इच्छा के विरुद्ध हठ करके शिशुपाल को विवाह के लिए बुला लिया है और वह बरातसहित उद्यान में आ भी पहुंचा है । रुक्मिणी को उसकी बुआ बहुत प्यार करती थी। उसने रुक्मिणी को दुःखित और संकटग्रस्त देख कर उसे आश्वासन दिया और श्रीकृष्णजी को एक पत्र लिखा"जनार्दन ! रुक्मिणी के लिए इस समय तुम्हारे सिवाय कोई शरण नहीं है ! यह तुम्हारे प्रति अनुरक्त है और अहर्निश तुम्हारा ही ध्यान करती है। इसने यह संकल्प कर लिया है कि कृष्ण के सिवाय संसार के सभी पुरुष मेरे लिए पिता या भाई के समान हैं । अतः तुम ही एकमात्र इसके प्राणनाथ हो ! यदि तुमने समय पर आने की कृपा न की तो रुक्मिणी को इस संसार में नहीं पा ओगे और एक निरपराध अबला की हत्या का अपराध आपके सिर लगेगा। अतः इस पत्र के मिलते ही प्रस्थान करके निश्चित समय से पहले ही रुक्मिणी को दर्शन दें।" इस आशय का करुण एवं जोशीला पत्र लिख कर बुआ ने एक शीध्रगामी दूत द्वारा श्रीकृष्णजी के पास द्वारिका भेजा। दूत पवनवेग के समान शीघ्र द्वारिका पहुंचा और वह पत्र श्रीकृष्ण के हाथ में दिया । पत्र पढ़ते ही श्री कृष्ण को हर्ष से रोमांच हो उठा और क्रोध से उनकी भुजाएँ फड़क उठीं । वे अपने आसन से उठे और अपने साथ बलदेव को ले कर शीघ्र कुण्डिनपुरी पहुंचे । वहाँ नगर के बाहर गुप्तरूप से एक बगीचे में ठहरे। उन्होंने अपने आने की एवं स्थान की सूचना गुप्तचर द्वारा रुक्मिणी और उसकी बुआ को दे दी। वे दोनों इस सूचना को पा ' कर अतीव हषित हुईं। __ रुक्मिणी के विवाह में कोई अड़चन पैदा न हो, इसके लिए रुक्मी और शिशुपाल ने नगर के चारों ओर सभी दरवाजों पर कड़ा पहरा लगा दिया था। नगर के बाहर और भीतर सुरक्षा का भी पूरा प्रबन्ध कर रखा था। लेकिन होनहार कुछ और ही थी। रुक्मिणी की बुआ इस पेचीदा समस्या को देख कर उलझन में पड़ गई । आखिर उसे एक विचार सूझा। उसने श्रीकृष्णजी को उसी समय पत्र द्वारा सूचित किया-"हम रुक्मिणी को साथ ले कर कामदेव की पूजा के बहाने कामदेव के मन्दिर में आ रही हैं । और यही उपयुक्त अवसर है--रुक्मिणी के हरण का । इसलिए आप इसी स्थान पर सुसज्जित रहें।" पत्र पाते ही श्रीकृष्ण ने तदनुसार सब तैयारी कर ली । विवाह के मंगलकार्य सम्पन्न हो रहे थे । उसी समय नगर में घोषणा करवाई गई कि "आज रुक्मिणी अपनी सखियों के साथ वर की शुभकामना के लिए कामदेव की पूजा करने जाएगी।" ठीक समय पर पूजा की सामग्री से सुसज्जित थालों को लिए मंगलगीत गाती हुई
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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