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चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव
४१७ उनकी उस कामवासना को भड़काने में प्रबल निमित्त बनती है—स्त्री ! गृहस्थजीवन में अणुव्रती श्रावक,जिसने स्वदारसंतोष-परदारविरमणव्रत ग्रहण किया है,वह अपनी विवाहिता स्त्री के साथ कामभोग-सेवन करता है, उसके लिए वह लोगों के लिए निन्दा या घृणा का पात्र नहीं बनता और न कोई व्यक्ति उसे मारपीट सकता है; लेकिन परस्त्री के साथ तो तभी व्यक्ति की काम-प्रवृत्ति होती है, जब उसकी वासना अत्यन्त भड़क उठती है । और ऐसा व्यक्ति जनता की दृष्टि में निन्दित, अपमानित माना जाता है, कोई न कोई व्यक्ति अथवा स्वयं उस स्त्री का पति ही उसे मार डालता है।
___ 'विसुणिया धणनासं, सयणविप्पणासं च पाउणंति'--इतना ही नहीं, जो पुरुष परस्त्रीगामी हों ; साथ ही अपनी जाति, समाज या राष्ट्र में प्रसिद्ध भी हों, वे अपने प्राणों से ही हाथ नहीं धो बैठते, अपितु अपने धन को भी (अपने उस कलंक को छिपाने या ऐब को दबाने के लिए) स्वाहा कर देते हैं अथवा अपने उस महापाप के कारण सारे परिवार के प्राणों को संकट में डाल देते हैं। रावण आदि परस्त्रीसंगकामी दुरात्मा अपने परिवार का विनाश कराने में कारण हुए हैं। . 'परस्स दाराओ'अस्सी हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्क"केवल मनुष्यों में ही नहीं ; पशुपक्षियों में भी यह देखा जाता है कि अपनी प्रिया मादा के साथ दूसरा नर पशु या पक्षी प्रेम करने लगता है तो वे परस्पर लड़ते हैं और एक दूसरे को मार डालते हैं । घोड़ों, हाथियों, सांडों, भैंसों, बंदरों या हिरण आदि पशुओं एवं पक्षियों में यह मनोवृत्ति पाई जाती है कि वे अपनी प्रेमिका मादा के साथ दूसरे नरपशु को बैठे या कामक्रीड़ा करते देखते हैं तो उसे सह नहीं सकते हैं। वे मौका देख कर अपने प्रतिद्वन्द्वी को मार डालते हैं। कई मनुष्य,बंदर या पक्षी अपनी प्रेमिका के साथ किसी नर-पशु या पक्षी को देखते ही परस्पर लड़ने लगते हैं । अच्छे से अच्छे गाढ़ या जिगरी दोस्त भी जब अपने दोस्त को परस्त्रीगमन करते देखते हैं, तो वे मित्रता छोड़ देते हैं, परस्पर शत्रुता धारण कर लेते हैं।
समये, धम्मे, गणे य मिदंति पारवारी'--परस्त्रीगामी मनुष्य का कोई धर्मकर्म नहीं होता । वह अभक्ष्य चीजों को भक्षण करने या अपेयवस्तुओं को पीने के लिए तैयार हो जाता है, अपने समाज को भी तिलांजलि दे बैठता है। वह समाज की मर्यादाओं को भी तोड़ देता है। समान आचारविचारों का जनसमूह गण कहलाता है । वह गण आसानी से धर्ममर्यादाओं के पालन करने के लिए जिन आचारविचारों या धर्मों-- नियमों, व्रतों की मर्यादा बांधता है, उसे भी परदारसेवी बेखटके तोड़ डालता है। वह सिद्धान्तों को ताक में रख देता है, अपने स्वीकृत शपथों को भी भंग कर देता है। उसका कोई भरोसा नहीं करता ।
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