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________________ ४१६ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्रं मूढता, जड़ता, अज्ञानता और विवेकविकलता पैदा होती है। मनुष्य अपनी शक्तियों का सदुपयोग करने के बदले दुरुपयोग कर बैठता है। मैथुनसंज्ञा भी मोहनीयकर्म के तीव्र उदय से होती है। दर्शनमोहनीय देव, गुरु, धर्म और आत्मा के गुणों पर श्रद्धा नहीं जमने देता ; वह सम्यक् विश्वास को उखाड़ फेंकता है। और चारित्रमोहनीय आत्मा में चारित्र के गुणों को उत्पन्न नहीं होने देता ; वह चारित्र का पालन करने में बाधक बनता है। त्याग, प्रत्याख्यान, असंयम से विरति, संयम में पराक्रम आदि समस्त चारित्रगुणों का वह नाश कर देता है। चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से जीव पापक्रियाओं को सुखदायी समझ कर उनमें अधिकाधिक प्रवृत्त होता जाता है । इसीलिए शास्त्रकार ने संकेत किया है कि मोह से ग्रस्त हुए जीव इस लोक में सदा भयोत्पादक, शरीर को सत्त्वहीन व क्षीण बना देने वाले और मन को सदा उद्विग्न तथा विक्षुब्ध बना देने वाले मैथुन का सेवन बेखटके करते हैं। . सत्थेहि हणंति एक्कमेक्क इस वाक्य में कामीपुरुषों की दशा का वर्णन किया गया है । मोहान्ध कामीजन क्षणिक विषयतृप्ति के लिए परस्पर एक दूसरे को प्राणरहित कर देते हैं। कहा भी है 'भङ क्त्वा भाविभवांश्च भोगिविषमान् भोगान् बुभुक्षुर्. भृशम् । मृत्वाऽपि स्वयमस्तभीतिकरुणः सर्वान् जिघांसुमुधा ॥ यद्यत्साधुविहितं हतमिति तस्यैव धिक कामुकः । कामक्रोधमहाग्रहाहितमनाः किं किं न कुर्याज्जनः ॥' . अर्थात्--कामी पुरुष पापों से निर्भय एवं जीवदया से रहित हो कर अपने भावी जन्मों को बिगाड़ देता है ; तथा अपने प्राणों को खो कर भी काले नाग के समान भयंकर भोगों को भोगने की तीव्र इच्छा करता है। जिस मैथुन आदि कुकृत्य को सत्पुरुषों ने निन्दित माना है-आत्मा से दूर किया है, धिक्कारा है, उसी की कामना करने वाला पुरुष काम और क्रोधरूपी महाग्रहों से ग्रस्त हुआ क्या-क्या दुष्कर्म नहीं कर डालता ? अर्थात् कामी पुरुष सभी पापकर्मों में बेखटके प्रवृत्त होते हैं । मतलब यह है कि कामवासना में अन्धा हो कर मनुष्य अब्रह्मचर्य के साथसाथ हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह और मोह, मद आदि अनेक पापों के करने से नहीं हिचकिचाता। सत्पुरुषों की बात उसके गले नहीं उतरती। इसीलिए कामी पुरुष असहिष्णु और आवेशयुक्त हो कर एक दूसरे को शस्त्र से मार डालते हैं। ___ विसयविसस्स उदीरएसु अवरे परदारेहि हम्मंति'--कुछ लोग, जो विषयरूपी विष को उत्तेजित करने वाली-बढ़ावा देने वाली परस्त्रियों में प्रवृत्त होते हैं ; दूसरों द्वारा मार डाले जाते हैं । वास्तव में देखा जाय तो विषयों को जन्म देने वाली एवं उत्तेजित करने वाली तो मनुष्य की कामुक मनोवृत्ति-मैथुनसंज्ञा होती है ; लेकिन
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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