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चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव
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बहुदुःखः, महद्भयः, बहुरजःसंप्रगाढो, दारुणः, कर्कशः, असातः, वर्षसहस्रर् मुच्यते, न च अवेदयित्वा अस्ति खलु मोक्षः, इति एवम् आख्यातवान् ज्ञातकुलनन्दनो महात्मा जिनस्तु वीरवरनामधेयो, अचीकथत् च अब्रह्मणः फलविपाकम् एतम् तम्, अब्रह्म अपि चतुर्थ सदेवमनुजासुरस्य लोकस्य प्रार्थनीयम् एवं चिरपरिचितम् अनुगतम् दुरन्तम् । चतुर्थ अधर्मद्वारं समाप्तम्, इति ब्रवीमि ॥४॥ (मू० १६)
पदार्थान्वय—(मेहुणसन्नासंपगिद्धा) मैथुनसेवन करने की संज्ञा-वासना में अत्यन्त आसक्त (य) और (मोहभरिया) अज्ञान-मूढ़ता या मोह-कामवासना से भरे हुए (एक्कमेक्क) परस्पर एक दूसरे को (सत्थेहिं) शस्त्रों से (हणंति) मारते हैं । (अवरे) दूसरे कई लोग (विसयविसस्स उदीरएसु परदारेसु) शब्दादिविषयरूपी विष को उदीरणा करने वाली-बढ़ाने वाली-पराई स्त्रियों में प्रवृत्त हुए अथवा (विसयविस -- उदारा परदारेसु) विषयरूपी विष के वशीभूत अर्थात् अत्यन्त तीव्र होकर परस्त्रियों में प्रवृत्त हुए (हम्मति) दूसरों द्वारा मारे जाते हैं। (विसुणिया) प्रसिद्ध हो जाने पर (धणनासं) धन का नाश (य) और (सयणविप्पणासं) अपने कुटुम्ब का नाश (पाउणंति) पाते हैं । (परस्स दाराओ) दूसरे की स्त्रियों से (जे अविरया) जो विरक्त नहीं हैं, वे (य) और (मेहुणसन्नासंपगिद्धा) म थुन सेवन करने की संज्ञा-वासना में अत्यन्त आसक्त, (मोहभरिया) मूढ़ता या मोह से परिपूर्ण (अस्सा हत्थी गवा य महिसा य मिगा) घोड़े, हाथी, बैल, भैसे और मग या जंगली जानवर (एक्कमेक्क) परस्पर लड़ कर एक दूसरे को (मारेति) मार डालते हैं, (मण्यगणा) मानवगण, (य) तथा (वानरा) बंदर (य) और (पक्खी) पक्षीगण (विरुज्झंति) मैथुनवश परस्पर एक दूसरे के विरोधी हो जाते हैं । (मित्ताणि) मित्र, (खिप्पं) शीघ्र ही, (सत्तू) शत्रु (भवंति) हो जाते है । (परदारी) परस्त्रीगामी (समये,धम्मे, य गणे) सिद्धान्तों या शपथों का, धर्माचरण का-सत्य-अहिंसादि धर्म का, और गण-समान विचारआचार वाले मानवसमूह का-समाज का,या समाज की मर्यादाओं का (भिदंति) भंग कर डालते हैं-तोड़ देते हैं। (य) तथा (धम्मगुणरया) धर्म और गुणों में रत (बंभयारी) ब्रह्मचर्यपरायण व्यक्ति, मैथुनसंज्ञा के वशीभूत हो जाने पर (खणेण) क्षणभर में (चरित्ताओ) चरित्र संयम से (उल्लोट्ठए) गिर जाते हैं—भ्रष्ट हो जाते हैं । (जसमंतो य सुव्वया) यशस्वी तथा भलीभाँति व्रत के पालन करने वाले मनुष्य (अयसकित्ति पाति) अपयश और अपकीति को पाते हैं । (रोगत्ता वाहिया) ज्वरादि