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________________ ४०४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र घर होती हैं और उनकी वेशभूषा अत्यन्त सुन्दर और उजली होती है । उनके स्तन, पेडू, मुख, हाथ, पैर और नेत्र अत्यन्त सुन्दर होते हैं । वे लावण्य, सौन्दर्य और यौवन के गुणों से सम्पन्न होती हैं। वे नन्दनवन में विचरण करने वाली अप्सराओं के समानमानुषीरूप में उत्तरकुरुक्षेत्र की अप्सराएँ होती हैं, जो आश्चर्यपूर्वक देखने जैसी होती हैं । वे तीन पल्योपम की उत्कृष्ट आयु को भोग कर अन्ततः कामभोगों से अतृप्त ही मृत्यु पाती हैं। . __व्याख्या ___ इससे पूर्व सूत्रपाठ में जिन भोगभूमि (अकर्मभूमि) के मनुष्यों का वर्णन किया है, उनकी पत्नियों का उससे आगे के सूत्रपाठ में वर्णन किया गया है। इस विस्तृत सूत्रपाठ में शास्त्रकार ने उत्तरकुरु-देवकुरुक्षेत्र की महिलाओं के उत्तमोत्तम गुणों और मांगल्यसूचक लक्षणों के अतिरिक्त उनके चरण, अंगुली, नख, जांघे, घुटने, संधियाँ, उरू, कमर, पेट, मध्यभाग, रोमावली, नाभि, कुक्षि, पार्श्वभाग, गात्रयष्टि, स्तन, बाहू, नख, पंजा, हाथों की उंगली, हस्तरेखा, कपोल, गर्दन, ठुड्डी, ओठ, दांत, तालु, जीभ, नाक, आँख, कान, भौंह, ललाट, मुख, मस्तिष्क, बाल, आदि प्रत्येक अंगउपांग का सूक्ष्म विश्लेषण किया है। अन्त में उनकी चाल-ढाल, आवाज, ऊँचाई, लोकप्रियता, कमनीयता, लावण्य, रूप, यौवन, वेशभूषा और निवास आदि का वर्णन भी किया है। मतलब यह है कि शास्त्रकार ने उनकी शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक योग्यता, प्रकृति और गुणों का सुन्दर चित्रण किया है। इस वर्णन से पता चलता है कि ये सब महिलाएं कृत्रिमताओं, फैशन और नखरों से काफी दूर होती हैं । जिस प्रकार भोगभूमि के पुरुष प्रकृति के अत्यन्त निकट होते हैं , वैसे ही वहाँ. की ये महिलाएं भी टापटीप और आडम्बर से अति दूर होती हैं । शरीर का जो स्वाभाविक सौन्दर्य, लावण्य, और स्वास्थ्य है, उसी पर वे निर्भर रहती हैं । यही कारण है कि इतने लम्बे वर्णन में कहीं भी यह बात नहीं बताई गई है कि उनके शरीर पर आभूषण कौन-कौन-से थे ? उनके नखों और ओठों को विशेष लाल करने के लिए कौन-सी चीज लगाई जाती थी ? गालों को विशेषरूप से चमकाने के लिए वे कौन-सा पाउडर या वासचूर्ण लगाती थीं ? दांतों को चमकाने के लिए, मिस्सी या मंजन, आँखों को आकर्षक बनाने के लिए काजल या अंजन कौन-से लगाती थीं ? बालों का जूड़ा बांधती थीं तो किस चीज से ? गले की शोभा के लिए कौन-सा हार पहनती थीं ? फिर भी स्त्रियों में जो स्वाभाविक सौन्दर्य होता है, वह उनमें था। वे स्वस्थ,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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