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________________ ४० ३ चतुर्थं अध्ययन : अब्रह्मचर्य आश्रव गुह्य प्रदेश उभरे हुए हैं । और परिपूर्ण गोल-गोल गाल होते हैं । उनकी गर्दन चार अंगुल ठीक प्रमाण वाली, श्रेष्ठ शंख के समान होती है; उनकी ठुड्डी मांस से भरी हुई, पुष्ट और आकार में श्र ेष्ठ होती है । उनके निचले ओठ अनार के फूल के समान चमकदार, लाल-लाल, पुष्ट, कुछ लंबे और सिकुड़े हुए होते हैं, उनके ऊपर के ओठ भी बड़े सुन्दर होते हैं । उनके दांत दही, जल की बूंदों, कुन्द के फूलों, चन्द्रमा, वासंती - चमेली की बेल की कलियों के समान तथा अन्तररहित एवं अत्यन्त उजले होते हैं । उनके तालु और जीभ लाल कमल के समान लाल और कमल के पत्तों के समान कोमल होते हैं । उनकी नाक कनेर की कलियों के समान टेढ़ेपन से रहित, आगे से अंदर को और उठी हुई, सीधी और ऊँची होती हैं । उनकी आँखें शरदऋतु के ताजे सूर्यविकासी कमल और चन्द्रविकासी कुमुदपुष्प तथा नीलकमल के पत्तों के ढेर के समान एवं लक्षणों से श्रेष्ठ, अकुटिल या तेजस्वी और प्रिय होती हैं । उनकी भौंहें कुछ नमाये हुए धनुष के समान मनोहर, काले-काले बादलों की घटाओं की - सी सुन्दर, पतली, काली और चिकनी होती हैं । उनके कान अच्छी तरह लगे हुए और प्रमाणोपेत होते हैं । उनकी श्रवणशक्ति अच्छी होती है, उनके कपोलतट पुष्ट और चिकने होते हैं, उनका ललाट चार अंगुल चौड़ा और विषमतारहित होता है। उनका मुख चांदनी से युक्त निर्मल पूर्ण चन्द्रमा के समान गोल और सौम्य होता है। उनका मस्तक छाते के समान गोल और उभरा हुआ होता है । उनके मस्तक के केश भूरे नहीं, किन्तु काले, चिकने और लंबे-लंबे होते हैं । वे छत्र, ध्वज, यज्ञस्तम्भ, स्तूप, दामिनी - माला, कमंडलु, कलश, बावड़ी, साथिया (स्वस्तिक), पताका, यव-जी, मच्छ, कछुआ, श्रेष्ठ रथ, कामदेव, अंकरत्न - हीरा, थाल, अंकुश, जिस पर चौपड़ या शतरंज खेली जाती है वह पट्टा या कपड़ा, स्थापनिका -ठवणी या ऊँचे पैंदे का प्याला, देव, लक्ष्मी का अभिषेक, तोरण (गृहद्वार पर मेहराव या वन्दनवार) पृथ्वी, समुद्र, श्रेष्ठ भवन, उत्तम घर, उत्तम दर्पण, क्रीड़ा करते हुए हाथी, बैल, सिंह और चंवर, इन बत्तीस उत्तम लक्षणों को धारण करने वाली होती हैं । उनकी गति चाल हंस के समान होती है । कोयल के समान उनकी मधुर वाणी होती है । वे कान्ति वाली और सर्वजनप्रिय होती हैं । वे मुख पर झुर्रियों, सफेद बालों और अपंगपन -- अंगविकलता से रहित होती हैं तथा कुरूपता, व्याधि, दुर्भाग्य और शोक से मुक्त हैं । वे ऊँचाई में मनुष्यों से कुछ कम ऊँची होती हैं वे शृंगार का
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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