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________________ ३८५ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र कार पिंड के समान होता है। उनके मस्तक की त्वचा (चमड़ी) अग्नि से तपाए, एवं धोए हुए सोने-सी निर्मल, लाल तथा बीच में केशों से युक्त होती है । उनके मस्तक के बाल सेमर के फल के समान अत्यन्त घने, घिसे हुए से बारीक, कोमल, सुस्पष्ट, प्रशस्त- मांगलिक, चिकने, उत्तम लक्षण से युक्त, सुगन्धित और सुन्दर होते हैं, तथा भुजमोचकरत्न के समान काले, नीलमणि, काजल, गुनगुनाते हुए प्रसन्न भौरों के झुड के समान. काली कांति वाले, झड के झंड इकट्ठे, टेढ़े-मेढ़े-घुघराले एवं दक्षिण की ओर घूमे हुए होते हैं । उनके शरीर के अवयव सुडौल, सुरचित व संगत-जचते हुए होते हैं । वे लक्षणों और व्यंजनों के गुणों से युक्त होते हैं। वे प्रशस्त–उत्तमोत्तम ३२ लक्षणों को धारण करने वाले होते हैं । उनकी आवाज हंस के स्वर के समान, क्रौंच-पक्षी के स्वर के तुल्य, कुंदुभि के नाद के समान, सिंह की गर्जना के समान, मेघ की गर्जना के समान, बिना फटे हुए स्वर वाली तथा कानों को सुख देने वाली होती है, उनका निर्दोष-शब्दोच्चारण भी आदेय होता है। उनका संहनन (शरीर की हड्डियों का ढांचा) वज्र ऋषभ नाराच होता हैउनका शरीर समचतुरस्र (चारों ओर से समान) संस्थान (डीलडौल) से गठे हुए होते हैं; उनके अंग-प्रत्यंग कान्ति से चमकते रहते हैं। उनके शरीर की चमड़ी उत्तम होती है। उनका शरीर रोगरहित होता है । कंकपक्षी के समान उनकी गुदा होती है, अथवा कंक पक्षी की तरह वे अल्पआहार ग्रहण करने वाले होते हैं, कबूतर की तरह वे खाए हुए गरिष्ठ आहार को पचा लेते हैं। वे पक्षी के मलद्वार समान मलद्वार वाले होने से मलत्याग करने में लेप से रहित होते हैं। उनकी पीठ, पार्श्व भाग और जंघाएँ परिपक्व होती हैं। उनका मुख पद्मं कमल व नीलकमल' की तरह सुगन्धित रहता है। उनके शरीर की वायु का वेग अनुकूल और मनोज्ञ होता है। उनके बाल स्वच्छ, चमकीले,काले होते हैं; उनका पेट शरीर के अनुपात में उन्नतकुछ उभरा हुआ सा होता है। वे अमृत के समान रसीले फलों का आहार करते हैं। उनका शरीर तीन गाऊ-कोस ऊँचा होता है। तथा उनकी आयु–स्थिति तीन पल्योपम की होती है। ऐसे वे अकर्मभूमि-भोगभूमि के मनुष्य भी तीन पल्योपम की उत्कष्ट आयु को भोगकर अन्त में कामभोगों से अतुप्त ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं ।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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