SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 432
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव ३८७ उनके नख लाल, बारीक (पतले), स्वच्छ, सुन्दर और चमकीले होते हैं । उनके हाथ की रेखाएं बड़ी चिकनी होती हैं, तथा चन्द्र, सूर्य, शंख, चक्र और दिशा स्वस्तिक के आकार से अंकित होती हैं। यानी सूर्य, चन्द्रमा, शंख, श्रेष्ठ चक्र, दिक्-स्वस्तिक आदि विभिन्न आकृतियों से युक्त उनकी हस्तरेखाएं होती हैं । उनके कंधे श्रीष्ठ और बलवान महिष, सूअर, सिंह, व्याघ्र, सांड और गजेन्द्र के कंधों के समान परिपूर्ण और पुष्ट होते हैं। उनकी गर्दन चार अंगुल प्रमाण वाली एवं शंख के समान सुन्दर होती है। उनकी दाढ़ी-मूछे न्यूनाधिकता से रहित,एक सरीखी,सविभक्त–अलग-अलग दिखाई देने वाली और शोभादायक होती हैं। उनकी ठुड्डी पुष्ट, मांसल, प्रशस्त, बाघ की ठुड्डी की तरह विस्तीर्ण-चौड़ी होती है; उनके नीचे के ओठ शोधे हुए मूगे तथा बिम्बफल के समान लाल होते हैं। उनके दांतों की पंक्ति चन्द्रमा के टुकड़े, निर्मल शंख, गाय के दूध, समुद्रफेन, कुन्दपुष्प, जलरज और कमलिनी के पत्ते पर पड़े हुए जलबिंदु या कमल की नाल की तरह सफेद-धवल होती है। उनके दांत अखंडित होते है। बिना टूटे, सघन, चिकने और सुरचित-सुन्दर होते हैं । उनके अनेक दांत एक ही दांत की श्रेणी की तरह मालूम होते हैं। यानी उनके बत्तीस दांत भी एक दांत के-से लगते हैं । उनके तलुए और जीभ का तलप्रदेश तपाये हुए निर्मल सोने के समान लाल-लाल होते हैं । उनको नाक गरुड़ की नाक के समान लंबी, सीधी और ऊँची उठी हई होती है। उनके नेत्र खिले हुए श्वेतकमल के समान होते हैं। तथा उनकी आँखें सदा प्रसन्न रहने के कारण विकसित धवल पपनी वाली होती हैं। उनकी भौंहे थोड़े नमाए हुए धनुष के समान सुन्दर तथा जमे हुए काले-काले बादलों की पंक्ति के समान आकार युक्त काली, संगत, उचित लंबी-चौड़ी और सुन्दर होती हैं । उनके कान परस्पर सटे हए प्रमाणोपेत होते हैं जिनसे वे खूब अच्छी तरह सुन सकते हैं । अथवा उनके कान अच्छी तरह सुनने की शक्ति वाले होते हैं। उनके गाल पुष्ट और मांस से भरे होने से लाल होते हैं । थोड़ी ही समय पहले उदित हुए बालचन्द्रमा के आकार के समान विशाल उनका ललाट होता है । उनका चेहरा पूर्ण चन्द्रमा के समान बड़ा ही सौम्य होता है । उनका मस्तक छत्र के समान उभरा हुआ होता है। उनके सिर का अग्रभाग लोहे के मुद्गर के समान मजबूत नसों से आबद्ध, उत्तम लक्षणों से युक्त, शिखरसहित भवन तथा गोला
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy