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________________ ३६४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र पियदंसणा) उनकी आकृति चन्द्रमा के समान सौम्य है तथा उनका दर्शन अत्यन्त प्रिय और मनोहारी है, (अमरिसणा) अपराध को सहन नहीं करने वाले या कार्य में आलस्य न करने वाले (पयंडडंडप्पयारगंभीरदरिसणिज्जा) जिनके दण्ड का प्रकार या प्रचार प्रचंड - उग्र है, या प्रकांड-श्रेष्ठ है और जो गंभीर दिखाई देते हैं । (ताल उविद्धगरुलकेऊ) ताड़ वृक्ष के चिह्न से बलदेव की ध्वजा अंकित है और वासुदेव की गरुड़ के चिह्नवाली ऊँची ध्वजा है। (बलवगगज्जंतदरितदप्पितमुट्ठियचाणू रमूरगा) गर्जते हुए बलशाली अभिमानियों में महाभिमानी मौष्टिक और चाण र नाम के नामी पहलवानों को जिन्होंने चूर-चूर कर दिया है, (रिट्ठवसभघातिणो) जिन्होंने रिष्ट नामक दुष्ट सांड को मार डाला है, (केसरिमुहविप्फाडगा) जो सिंह के मुंह को चीरने वाले हैं, (दरितनागदप्पमहणा) गर्वयुक्त कालीयनाग (सर्प) के घमंड को चूर-चूर करने वाले (जमलज्जुणभंजका) विक्रिया से बने हुए वृक्ष के रूप में यमल अर्जुन को नष्ट कर देने वाले, (महासउणिपूतणारिवू) महाशकुनि और पूतना नाम की विद्याधरियों के शत्रु, (कसमउडमोडगा) कंस के मकुट को मोड़ने वाले यानी मुकुट पकड़ कर कंस को नीचे पटक कर मारने वाले, (जरासिंधमाणमहणा) जरासंध के मान का मर्दन करने वाले, (य) और (तेहि) उन प्रसिद्ध, (अविरलसमसहियचंदमंडलसमप्प हिं) घनी, समान और ऊँची की हुई शलाकाओं- ताडियों से निर्मित एवं चन्द्रमा के मंडल के समान प्रभाव वाले, (सूरमरीयकवचं विणिम्मयंतेहि) सूर्य की । किरणों के समान चारों ओर तेज से फैलते हुए किरणमंडलरूप कवच को फैकतेबिखेरते हुए, (सपतिदंडेहि) अनेक दंडों से (धरिज्जमाणेहिं धारण किये जाते हए (आयवत्त हिं) छत्रों से (विरायंता) विराजमान-शोभायमान (य) और (ताहि) उन-उत्कृष्ट (पवरगिरिकुहरविहरणसमुठ्यिाहिं) श्रेष्ठ पर्वतों की गुफाओं में विचरण करने वाली चमरी गायों से प्राप्त किये गए (निरुवहयचमर-पच्छिमसरीरसंजाताहि) नीरोगी चमरी गायों के शरीर के पिछले भाग-पूछ वाले हिस्से से उत्पन्न हुए, (अमइल . सियकमलविमुकुलुज्जलितरयतगिरिसिंहरविमलससिकिरणसरिसकलहोय - निम्मलाहिं) बिना मुझाए या बिना मसले हुए विकसित श्वेतकमल, उज्ज्वल रजत गिरि के शिखर तथा निर्मल चन्द्रमा की किरणों के सदृश वर्ण वाले एवं चांदी की तरह निर्मल, (पवणाहयचवलचलियसललियपणच्चियवीइपसरियखीरोदगपवरसागरुप्पूरचंचलाहि) हवा से प्रताड़ित, चपलता से चलते हुए, लीलापूर्वक नाचते हुए व लहरों के प्रसार तथा सुन्दर क्षीरसागर के जलप्रवाह के समान चंचल, (माणससरपसरपरिचियावासविसदवेसाहि) मानसरोवर के प्रसार में परिचित आवास और श्वेत वेष
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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