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________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव ३६५ वाली (कणगगिरिसिहरसंसिताहि) सुवर्णमय सुमेरुपर्वत के शिखर पर बैठी हुई, (अवायुप्पातचवलजयिणसिम्घवेगाहिं) ऊपर और नीचे गमन करने में दूसरी चंचल वस्तुओं को शीघ्र गति के वेग में जीतने वाली, ऐसी (हंसवधूयाहि) हंसनियों के (चेव) समान चामरों से (कलिया) युक्त (नाणामणिकणगमहरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तडंडाहि) नाना प्रकार की मणियों के, पीले रंग वाले तथा बहुमूल्य सोने के चमकीले विविध दंडों से,एवं (सललियाहि) लालित्य से युक्त (नरवतिसिरिसम दयप्पगासणकरोहिं)राजाओं की लक्ष्मी के अभ्युदय को प्रकाशित करने वाले, (वरपट्टणुग्गयाहिं) बड़े-बड़े नगरों में बने हुए, (समिद्धरायकुलसेवियाहिं) सम द्धिशाली राजवंशों में इस्तेमाल किये जाने वाले (कालागुरुपवरकंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-वसवासविसदगंधुद्ध याभिरामाहि) काला अगर, उत्तम चीड़ को लकड़ी और तुरुष्क-सुगन्धित द्रव्यविशेष से बनी हुई धूप के कारण उठने वाली सुवास से जिसमें स्पष्ट व मनोहर सुगन्ध आ रही है, ऐसे (उभयो पासं पि उक्खिप्पमाणाहिं चामराहि) दोनों बगलों-- पावों की .ओर ढुलाए जाते हुए चंवरों से (सुहसीतलवातवीइअंगा) सुखद और शीतल हवा अंगों पर की जा रही है ; ऐसे (अजिता) जो किसी से जीते नहीं जा सके, (अजितरहा) अपराजित रथ वाले (हलम सलकणगपाणी जो अपने हाथ में हल, म सल और बाण रखते हैं । (संखचक्कगयसत्तिणंदगधरा) पांचजन्य शंख, सुदर्शन चक्र, कौमुदी गदा, शक्ति (त्रिशूल विशेष) और नन्दक नामक तलवार को धारण करने वाले, (पवरुज्जलसुकतविमलकोथूभतिरीडधारी अत्यन्त उज्ज्वल व अच्छी तरह बनाये गये कौस्तुभ मणि और मुकुट को धारण करने वाले (कुंडलउज्जोवियाणणा) कुंडलों से जिनका मुंह प्रकाशित होता है, (पुंडरीयणयणा) श्वेतकमल के समान जिनके विकसित नेत्र हैं, (एगावलीकंठरइयवच्छा) जिनके कंठ और वक्षःस्थल पर एकलड़ी वाला विविध मणियों का आनन्ददायी हार पड़ा रहता है, (सिरिवच्छसुलंछणा) जिनके वक्षस्थल पर श्रीवत्स का उत्तम चिह्न है, (वरजसा) जो बड़े यशस्वी हैं, (स-वोउयसुरभिकुसुमसुरइयपलंबसोहंत-वियसंत-चित्तवणमालरतियवच्छा) सब ऋतुओं के सुगन्धित फूलों से गूथी हुई,लम्बी, शोभायुक्त खिली हुई अनूठी वनमाला से जिनका वक्षस्थल सुशोभित होता है, (अट्ठसयविभत्तलक्खणपसत्थसुदरविराइयंगम गा) मांगलिक एवं सुन्दर आठ सौ विभिन्न लक्षणों से जिनके अंग और उपांग सुशोभित होते हैं, (मत्तगयरिंदललियविक्कमविलसियगती) जिनकी गति अर्थात् चाल मतवाले श्रेष्ठ गजेन्द्र की - सी ललित और विलासयुक्त है, (कडिसुत्तगनीलपीतकोसिज्ज
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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