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________________ ३४५ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव राजहंस, सारस, चकोर, चक्रवाक पक्षियों के जोड़े, चंवर, ढाल, पव्वीसक नामक बाजा, सात तारों को वीणा, उत्तम पंखा, लक्ष्मी का अभिषेक, पृथ्वी, तलवार, अंकुश, निर्मल कलश, झारी और सकोरा या प्याला, श्रेष्ठ पुरुषों के इन सब उत्तम, मांगलिक और विभिन्न लक्षणों-चिह्नों को धारण करने वाले (बत्तीसवररायसहस्साणुजायमग्गा) बत्तीस हजार श्रेष्ठ मुकुटबद्ध राजा मार्ग में जिनके पीछे-पीछे चलते हैं, (चउसद्विसहस्सपवरजुवतीण णयणकता) चौसठ हजार सुन्दर युवतियों के नेत्रों के प्यारे, (रत्ताभा) लाल कान्ति वाले, (पउमपम्हकोरंटदामचंपकसुतयवरकणकनिहसवन्ना) कमल के गर्भ-मध्यभाग, चम्पा के फूलों, कोरंट (हजारा) नामक फूलों की माला और तपे हुए सुन्दर सोने की कसौटी पर खींची हुई रेखा के समान गोरे रंग के, (सुवण्णा) सुन्दर वर्ण वाले, (सुजायसव्वंगसुंदरंगा) जिनके सभी अंग बड़े सुन्दर और सुगठित—सुडौल हैं, (महग्यवरपट्टणुग्गय विचित्तरागएणिपेणिणिम्भियदुगुल्लवरचीणपट्टकोसेज्ज-सोणीसुत्तकविभूसियंगा) बड़े-बड़े शहरों में बने हुए, विविध रंगों वाले, हिरनी तथा खास जाति की हिरनी के चमड़े के समान कोमल बहुमूल्य वल्कलछाल के वस्त्र अथवा पूर्वोक्त हिरनी के चमड़े से बने हुए कीमती कपड़े, चीनी वस्त्र तथा रेशमी वस्त्र और कटिसूत्र से जिनका शरीर सुशोभित है, (वरसुरभिगंधवरचण्णवासवरकुसुमभरियसिरया) जिनके मस्तक श्रेष्ठ सुगंध से, सुन्दर चूर्ण (पाउडर) को सुवास से, उत्तम फूलों से भरे हुए हैं, (कप्पियछेयारियसुकयरइतमालकडगंगयतुडियवरभूसणपिनद्धदेहा) प्रसिद्ध चतुर कलाकारों-शिल्पियों द्वारा बड़ी कुशलता से आर्यजनों के पहनने योग्य बनाई हुई सुखकर माला, कड़े, बाजूबंद, तुटिक–अनन्त तथा उत्तम आभूषण शरीर पर पहने हुए, (एकावलिकंठसुरइयवच्छा) जिन्होंने कंठों और वक्षस्थलों पर एकलड़ी की सुन्दर मणिमाला पहन रखी है, (पालंबपलंबमाणसुकयपडउत्तरिज्जमुद्दियापिंगलंगुलिया) जो लम्बी धोती और लटकते हुए दुपट्टे को पहने हैं तथा उंगलियों में अंगूठी डाले हुए हैं, जिनसे उनकी अंगुलियाँ पीली हो रही हैं, (उज्जलनेवत्थरइयचेल्लगविरायमाणा) वे अपनी उजली वेषभूषा से, गहनों और अच्छी तरह पहनी हुई पोशाक से सुशोभित हो रहे हैं, (तेयसा दिवाकरोव्व दित्ता) तेज से वे सूर्य की तरह चमक रहे हैं, (सारयनवत्थणियमहुरगंभीरनिद्धघोसा) उनकी आवाज शरदऋतु के नये मेघ के गर्जन के समान मधुर, गम्भीर और स्नेह-भरी है, (उप्पन्नसमत्तरयणचक्करयणपहाणा) चक्ररत्नप्रमुख समस्त १४ रत्न जिनके । यहाँ उत्पन्न हो गए हैं, (नवनिहिवई) जो नौ निधियों के स्वामी हैं, (समिद्धकोसा)
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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