SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 389
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र तरह, (भरह-णग-णगर-णियम-जणवय-पुरवर-दोणमुह-खेड-कव्वड-मडंब-संवाह-पट्टणसहस्समंडियं) भरतक्षेत्र के हजारों पर्वतों, नगरों, निगमों-व्यापारियों के स्थानों, जनपदों, राजधानीरूप नगरों, द्रोणमुखों-जलस्थलपथ से युक्त स्थानों-बंदरगाहों, धूल के कोट वाली बस्तियों-खेड़ों, कर्बटों-कस्बों, मडंबों—आसपास बस्ती से रहित स्थानों, संवाहों-छावनियों, पत्तनों मंडियों से सुशोभित, (थिमियमेइणियं) सुरक्षा से निश्चित-स्थिर लोगों से बसी हुई पृथ्वी वाली (एगच्छत्त) एकछत्रा, (ससागरं) समुद्र-पर्यन्त (वसुहं) वसुधा का (भुजिऊण) उपभोग करके (चक्कवट्टी) चक्रवर्ती, (य) तथा (नरसीहा) मनुष्यों में सिंह के समान शूरवीर, (नरवई) मनुष्यों के स्वामी, (नरिंदा) मनुष्यों में ऐश्वर्यशाली, (नरवसभा) मनुष्यों में लिये हुए कर्तव्यभार को निभाने में समर्थ बैल के समान, (मरुयवसभकप्पा) नाग-भूत यक्षादि देवों में वृषभ के समान अग्रगण्य, (अब्भहियं रायतेयलच्छोए दिप्पमाणा) राजकीय तेजोलक्ष्मी से अत्यधिक देदीप्यमान, (सोमा) सौम्य अथवा नोरोग,(रायवंसतिलगा) राजवंश के तिलक, (रविससिसंखवरचक्कसोत्थियपडाग-जवमच्छकुम्मरहवरभगभवणविमाण तुरयतोरणगोपुरमणिरयणनंदियावत्तमुसलणंगलसुरइयवरकप्परुक्ख - मिगवति-भद्दासणसुरुचि-थू भ-वरमउड - सरियकुंडल - कुंजरवर - वसभदीवमंदरगरुलझय - इंदकेउदप्पण-अट्ठावय-चाव-बाण-नक्खत्त-मेह-मेहल-वीणाजुगछत्तदामदामिणीकमंडलु-कमल-घंटावरपोत-सूइ-सागर-कुमुदागर-मगर-हार-गागर-नेउर-णग- णगर-वइर- किन्नर-मयूर-वररायहंस-सारस-चकोर-चक्कवाग-मिहुण-चामर-खेडक - पव्वीसग - विपंचि-वरतालियंटसिरियाभिसेय-मेइणि-खग्गं-कुस-विमलकलस-भिंगार - वद्धमाणगपसत्थ - उत्तम-विभत्तवरपुरिसलक्खणधरा) सूर्य, चन्द्र, शंख, उत्तम चक्र, स्वस्तिक, पताका, जौ, मत्स्य, कछआ, उत्तम रथ, योनि, भवन, विमान, अश्व, तोरण, नगरद्वार, चन्द्रकान्त आदि मणि, रत्न, नौ कोनों वाला साथिया–नन्द्यावर्त, मूसल, हल, सुरचित—सुन्दर श्रेष्ठ कल्पवृक्ष, सिंह, भद्रासन, सुरुचि नामक आभूषण, स्तूप, सुन्दर मुकुट, मुक्तावली हार, कुंडल,हाथी,उत्तम बैल,द्वीप,मेरुपर्वत अथवा घर,गरुड़, ध्वजा, इन्द्रकेतु, (इन्द्र-महोत्सव में गाड़ी जाने वाली स्तंभरूप लकड़ी),दर्पण-शीशा,वह फलक या पट जिस पर शतरंज या चौपड़ खेली जाती है, अथवा कैलाशपर्वत,धनुष, बाण,नक्षत्र, मेघ,मेखला—करधनी, वीणा, गाड़ी का जुआ, छत्र, माला, पूरे शरीर तक लम्बी माला, कमंडलु, कमल, घंटा, मुख्य जहाज, सुई, समुद्र, कुमुदवन या कुमुदों से भरा तालाब, मगर, हारमणिमाला, गागर नामक आभूषण अथवा पानी का गागर-घड़ा, पैरों के नपुर पर्वत, नगर, वज्र, किन्नर नामक देव अथवा किन्नर नामक बाजा, मोर, उत्तम,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy