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________________ ४०६ ४१४ ४१६ ४१६ ४२१ ४३६ ४४२ ४४५ ४४५ ४४८ ४४६ ४५१ ४५२. अब्रह्माचरण और उसका दुष्फल .... मैथुन संज्ञा से हानि और उसका अर्थ कामवासना से पीड़ित व्यक्तियों की मोहमुग्धदशा परस्त्रीगामिता का दुष्परिणाम स्त्री के निमित्त से हुए संग्रामों के उदाहरण अब्रह्मसेवन के दूरगामी भयंकर फल चारों गतियों में मिलने वाले कटफल ६-पंचम अध्ययन : परिग्रह आश्रव परिग्रह का स्वरूप संसार के हिंसाजनक कार्यों का कारण परिग्रह परिग्रह का लक्षण परिग्रह के भेद परिग्रहवृद्धि से संतोष और शान्ति नहीं परिग्रह को वृक्ष की उपमा ... परिग्रह के सार्थक नाम और उनकी व्याख्या परिग्रहधारी प्राणी कौन-कौन हैं ? परिग्रह पर ममत्त्व का मूल कारण लोभ ही परिग्रहरूप पाप का बाप है परिग्रह सेवनकर्ताओं की सूची देवों के पास अधिक परिग्रह क्यों ? देवों का निवास और संक्षिप्त स्वरूप देवों के परिग्रह के रूप अभीष्ट परिग्रहों से भी देवों को उचित तृप्ति और संतोष नहीं ? परिग्रह का स्वभाव परिग्रह के लिए विविध उपाय और उनसे होने वाले अनर्थ परिग्रहलिप्सुओं का स्वभाव परिग्रह के साथ दुर्गुणों का अवश्यम्भावी सम्बन्ध . परिग्रह : एक बेजोड़ पाशबन्धन परिग्रह का फलविपाक परिग्रह के कारण दोनों लोकों में जीवन विनाश परिग्रह का फल : दीर्घकाल तक संसार परिभ्रमण आश्रवद्वार का उपसंहार ४५६ ४६८ ४७९ ४८० ४८० ४८१ ४८३ ४८५ ४८५ ४८६ ४८६ ४६० ४६२ ४६२ ४६३ ४६६
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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