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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
है। इसलिए रति अब्रह्मचर्य का उत्कट और बाह्यरूप है, इसी कारण इसे 'रति' (संयोगक्रिया) भी कहा है। । 'राचिंता'-स्त्रीपुरुषों की पारस्परिक रतिक्रीड़ा, हावभाव, विलास आदि प्रणयराग कहलाता है ; इसे आजकल रागरंग भी कहते हैं। उसका चिन्तन करने से कामविकार पैदा होता है ; इसलिए रागचिंता भी अब्रह्म का कारण होने से अब्रह्म का पर्यायवाची शब्द माना गया है। कहीं-कहीं 'रागो' पाठ भी है। उसका अर्थ होता है—दाम्पत्यप्रणय-विकारी प्रेम । चूकि अब्रह्म अपने आप में राग का ही कार्य है ।
'कामभोगमारो'–काम (शब्द और रूप) तथा भोग (रस, गन्ध और स्पर्श) से मार-काम पैदा होता है ; अतः अब्रह्म और मार दोनों को एकार्थक कहें तो अनुचित नहीं । अथवा काम और भोग द्वारा यह जीवों को मारता है—पीड़ित करता है, इसलिए भी यह अब्रह्म का समानार्थक है।
वेरं—संसार में वैरविरोध के दो मूलकारण हैं-धन और स्त्री। स्त्री के निमित्त से जो वैर बढ़ता है, उसमें यह अब्रह्म (काम) ही कारण है। इसलिए वैर को जन्म देने वाला होने के कारण कार्य का कारण में उपचार करके इसे वैर कहा है ।
'रहस्स'–प्रायः सभी पापक्रियाएं एकान्त में की जाती हैं। पापकृत्य होने के कारण मैथुनसेवन भी एकान्त में किया जाता है इसलिए एकान्त में किये जाने से इस कुकार्य को भी रहस्य कह कर 'अब्रह्म' का साथी बताया है। .. गुज्झं—पाप हमेशा छिपाने योग्य हुआ करता है । 'प्रच्छन्नं पापं'--पाप का लक्षण है-'प्रच्छन्न'। इसलिए इसे गुह्य-गोपनीय कहा है । अथवा मैथुन गुह्य-गुप्त अंगों द्वारा सम्पन्न होता है, इसलिए इसे 'गुह्य' कह कर अब्रह्म का मित्र बताया है।
'बहुमाणो'—संसार के अगणित प्राणी अब्रह्म की प्रवृत्ति को मानते हैं ; अथवा स्त्रीपुरुष के संयोगजन्य इंस अकार्य को बहुत सम्मान देते हैं । इसलिए इसे 'बहुमान' कह कर अब्रह्म का समर्थक बताया है।
'बंभचेरविग्यो'–संसार में राम (परमात्मा-शुद्ध आत्मा) भी है और काम भी । परन्तु राम की प्राप्ति में जैसे काम सहयोग नहीं देता, वैसे ही काम की प्राप्ति में राम भी सहयोग नहीं दे सकता । मतलब यह है राम और काम एक ही सिंहासन पर नहीं बैठ सकते । ब्रह्मचर्यपालन शुद्ध आत्मा एवं परमात्मा की प्राप्ति के लिए है, जबकि अब्रह्मचर्य (काम) का आचरण क्षणिक वैषयिक सुख की प्राप्ति के लिए होता है। अतः यह स्वाभाविक है कि अब्रह्मचर्य ब्रह्मचर्यपालन में सहायक न हो कर विघ्नकारक ही बनेगा। अब्रह्मचर्य कामोत्तेजक विचारों, कुचेष्टाओं, अश्लील दृश्यों, गंदे गीतों, तथा कामविकार की तमाम प्रवृत्तियों की ओर खींचेगा ; जबकि ब्रह्मचर्य