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चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव
अर्थात् 'चाहे कोई कायोत्सर्ग में स्थित रहने वाला-ध्यानी हो,चाहे मौनी हो,चाहे वृक्ष की छाल पहने रहता हो अथवा तपस्वी हो, यदि वह अब्रह्मचर्य (काम) में प्रवृत्त होना चाहता है तो वह ब्रह्मा ही क्यों न हो, मुझे तो अच्छा नहीं मालूम होता। उसी का पढ़ना सफल है, उसी का अभ्यास और मनन करना सफल है, तभी उसे ज्ञानी कहा जायगा और तभी सावधान और विवेकी आत्मा माना जायगा, यदि वह आपत्ति आने पर भी अकार्य-अब्रह्म में प्रवृत्ति नहीं करता है।'
ऊँचे से ऊँचे पद पर पहुंचा हुआ पुरुष भी कामसेवन के चक्कर में पड़ते ही एकदम नीचे गिर जाता है, सर्वथा पतित और गुणों से रहित हो जाता है । वह किसी का विश्वासपात्र नहीं रहता। ___विभंगो—अब्रह्मचर्य का मार्ग अपनाते ही साधक के चारित्रादि गुणों का भंग हो जाता है । चारित्र-पालन के लिए जो व्रत, नियम आदि स्वीकार किये जाते हैं, वे सब टूट जाते हैं। मनुष्य संयम में शिथिल होकर मर्यादाएँ तोड़ता जाता है । यह सब प्रभाव अब्रह्मचर्य का ही है । इसलिए उसे विभंग भी कहा गया है।
विन्भमो-संसार में अगणित लोगों को अब्रह्मचर्य में प्रवृत्त देख कर तथा उन्हें धन और साधनों से सम्पन्न देखकर अब्रह्मचर्य के प्रति अच्छाई की या अब्रह्मचर्य में सुखप्राप्ति की भ्रान्ति हो जाती है। अतः विशेष प्रकार के भ्रम का कारण होने से अब्रह्म को विभ्रम भी कहा गया है । अथवा विभ्रम का अर्थ कामविकार भी है। अब्रह्म कामविकारों का कारण है, अतः इसे विभ्रम भी कहा गया है।
अधम्मो-मनुष्य के मन में कामविकार का प्रवेश होते ही धर्मभाव नष्ट होने लगते हैं । इसलिए इसे अधर्म कहा है । अथवा यह स्वयं अधर्मरूप (पापस्वरूप) है और अधर्म (पाप) का बन्ध भी करता है, इसलिए इसे अधर्म ठीक ही कहा है।
असीलया-शील यानी सदाचार से रहित होना अशीलता है। जब मनुष्य अब्रह्मचर्य को अपनाता है तो सदाचार की मर्यादाओं को ताक में रख देता है। चारित्रमोहनीयकर्म के उदय से कुशील सेवन होता है। इसलिए अशीलता को अब्रह्मचर्य की बहन कहें तो अनुचित नहीं।
... गामधम्मतत्ती—कामी पुरुष व्यसनी की तरह रात-दिन कामवासना पैदा करने वाले शब्दादि कुविषयों की फिराक में रहता हैं । शब्दादि कुविषयों की तलाश करते रहना ही गामधर्म-तप्ति है । अब्रह्मचर्यपरायण व्यक्ति भी यही धंधा करता है। इसलिए अब्रह्मचर्य और ग्रामधर्मतप्ति ये दोनों साथी हैं।
‘रती'-स्त्रीपुरुष की गुप्त रतिक्रीड़ा ही अब्रह्मचर्यसेवन की अन्तिम निष्पत्ति
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