________________
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
इसलिए अब्रह्मचर्यं (काम) सेवन की तीव्रता से कामवासना की मुख्य निमित्त - भूत किसी स्त्री को ले कर होने वाली लड़ाई (विग्रह ) भी काम के कारण होने से विग्रह को अब्रह्म का पर्यायवाची कहा गया है ।
३३६
अथवा 'वुग्गहो' पद भी इसके बदले मिलता है । वस्तु को विपरीत मानना ही व्युद्ग्रह या विपरीत आग्रह है । वस्तु को विपरीत मानने पर भी काम में प्रवृत्ति होती है । जैसा कि कामियों का स्वरूप बताया है—
दुःखात्मेषु विषयेषु सुखाभिमानः, सौख्यात्मकेषु नियमादिषु च दुःखबुद्धिः । उत्कीर्णवर्णपदपंक्तिरिवाऽन्यरूपा, सारूप्यमेति विपरीतमतिप्रयोगात् ॥
अर्थात् - ' जो इन्द्रियविषय दुःखदायक हैं, उन्हें विपरीत आग्रहवश कामी सुखरूप मानते हैं और नियम, व्रत, त्याग आदि जो वास्तव में सुखरूप हैं, उन्हें वे बड़े कष्टमय मानते हैं । जैसे किसी पत्थर या लकड़ी पर उलटी खोदी हुई वर्णों और पदों की पंक्ति होती है, वैसे ही कामी पुरुषों की दृष्टि और गति भी उलटी है ।
व्युद्ग्रह - विपरीत आग्रह भी कामवासना का कारण होता है, अत: इसे पर्यायवाची पद मानना भी अनुचित नहीं है ।
विघाओ - - अब्रह्मचर्य ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि आत्मगुणों का सर्वथा घात करने वाला होने से 'विघात' भी कहता है ।
क्योंकि जब मनुष्य के हृदय में कामपिशाच ( अब्रह्म ) प्रविष्ट हो जाता है तो उसके सभी सद्गुण एक-एक करके नष्ट हो जाते हैं । एक आचार्य ने ठीक ही कहा है-
' विषयासक्तचित्तस्य गुणः को वा न नश्यति ।
न वैदुष्यं, न मानुष्यं नाभिजात्यं, न सत्यवाक् ॥
अर्थात् -- जिसका चित्त विषयों में आसक्त हो जाता है; उसका कौन-सा ऐसा गुण है, जो नष्ट न हो जाता हो ? उस कामासक्त में तब न तो विद्वत्ता रहती है, न मनुष्यता ही । न वह कुलीनता को रख पाता है और न अपने वचनों का पाबंद ही रहता है ।'
एक आचार्य ने तो यहाँ तक ललकार कर कहा है-
" जइ ठाणी जइ मोणी जइ मुंडी वक्कली तवस्सी वा ।
न
रोयए मज्झ ॥ १ ॥
पत्थंतो अ अबंभं बंभा वि तो पढियं तो गुणियं तो मुणियं तो य चेइओ अप्पा | आवडियपेल्लियामंतिओ वि जइ न कुणइ अकज्जं ॥ २॥ | "