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________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव ३३५ अब्रह्मचर्य-सेवन है। बड़े-बड़े योगियों का मन सुन्दरियों को देख कर चलायमान हो जाता है, साधारण आदमियों की तो बात ही क्या ? प्रमाण के लिए देखिए निम्नलिखित गाथा-- 'निक्कडकडक्खकंडप्पहारनिन्भिन्न - जोगसन्नाहा । महारिसिजोहा जुवईण जंति सेवं विगयमोहा ॥' अर्थात्—'निर्मोही महर्षि कर्मशत्रुओं के साथ जूझने वाले योद्धा हैं; लेकिन उनका भी योग (ध्यान या समाधि) रूपी कवच युवतियों के निकृष्ट कटाक्षरूपी बाण से छिन्न-भिन्न हो जाता है और वे उन ललनाओं के सेवन करने में प्रवृत्त हो जाते हैं; तब दूसरों का तो कहना ही क्या ?' ___ इसलिए मनःसंक्षोभ को अब्रह्म का जनक कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं। 'अनिग्गहो'-इन्द्रियों के विषय जब मनुष्य के सामने आते हैं, उस समय यदि वह अपने को संभाल ले; इसी प्रकार जब मन में दुविषयों के संकल्प उठने लगें कि तुरन्त सावधान हो जाय; मन में राग और द्वेष न होने दे तथा इन्द्रियों को उनमें प्रवृत्त न होने दे; शीघ्र ही रोक ले तो कोई कारण नहीं है कि काम-वासना में प्रवृत्ति हो । परन्तु जब मनुष्य इन्द्रियों के विषयों और मन के दुर्विकल्पों को रोकता नहीं, उन्हें खुल्ली छूट दे देता है, तभी काम-वासना में प्रवृत्ति या अब्रह्माचरण होता है। कहा भी है 'बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति'—इन्द्रियाँ बड़ी बलवान् होती हैं। ये बड़े-बड़े विद्वानों को भी खींच कर विषयों के गर्त में पटक देती हैं। इसलिए अनिग्रह भी अब्रह्म के मुख्य कारणों में से एक होने कारण उसे अब्रह्म का समानार्थक सहोदर कहना उचित ही है। विग्गहो-काम-वासना के सेवन में मुख्य निमित्त स्त्री होती है। जब दो कामी पुरुष एक ही सुन्दरी को चाहते हैं और दोनों ही उसे अपनी बनाने पर उतारू हो जाते हैं तो कामावेश में वे उसके लिए बड़ी से बड़ी लड़ाई या युद्ध करने को व मरनेमारने को तैयार हो जाते हैं। अथवा जब कोई जबर्दस्त कामी पुरुष किसी भद्र पुरुष की सुन्दर स्त्री को जबरन हथियाना चाहता है, और वह उसके कब्जे में अपनी पत्नी को देने के लिए तैयार नहीं होता, तब जबर्दस्त कामान्ध पुरुष उसके लिए लड़ाई छेड़ता है और अपनी जान को भी जोखिम में डाल देता है । कहा भी है "ये रामरावणादीनां संग्रामा प्रस्तमानवाः । श्रूयन्ते स्त्रीनिमित्त न, तेषु कामो निबन्धनम् ॥' अर्थात—सुनते हैं, प्राचीन काल में राम-रावण आदि के जो युद्ध हुए हैं, जिन में लाखों आदमियों का संहार हुआ है, वे सब स्त्री के निमित्त से हुए हैं। उनमें मुख्य कारण काम–अब्रह्मचर्य ही तो था।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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