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________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव जीतेजी तो अपनी जाति, परिवार, राष्ट्र और समाज को कलंकित और बदनाम करता ही है ; मरने के बाद भी अपनी बदबू छोड़ जाता है। शास्त्रकार ने पापात्मा के मरने के बाद जनता में होने वाली इसी प्रतिक्रिया का विश्लेषण किया है-'अणिट्ठवयणेहि सप्पमाणा, 'सुट्ठ कयं जं मउत्ति पावो', तु?णं जणेण हम्ममाणा, लज्जावणका य होति सयणस्सवि 'मया संता ।' यानी पापात्मा के मरने के बाद लोग अनिष्टवचनों से अपने उद्गार निकालते हैं-'अच्छा हुआ, यह पापी मर गया या इस पापी को मार डाला।' उसके मरने से लोग संतुष्ट हो कर उसके बारे में जगह-जगह ताने मारते हैं। इतना ही नहीं, जीतेजी भी उसे धिक्कारते हैं, मरने के बाद भी धिक्कारते हैं। उसके स्वजनसम्बन्धी भी चिरकाल तक उसकी बदनामी करते रहते हैं।" वास्तव में ऐसे पापकर्म करने वाले व्यक्ति जीतेजी भी दुनिया के लिए भारभूत होते हैं और मरने के बाद भी अपने कुल, जाति और राष्ट्र को बदनाम और कलंकित करते हैं। एक तरह से ऐसे अपयशकामी लोग जीतेजी भी मरे हुए के समान हैं। . ऐसे पापियों की अनचाही कुमौत—ऐसे भयंकर पापकर्म करने वाले कैदखाने में बुरी तरह कुत्ते की मौत मरते हैं। इतने कष्ट, दुःख या विपत्तियाँ अगर वे सदाचारी और धर्मपरायण हो कर समाज, राष्ट्र वा देश के लिए सहते या हंसतेहंसते मौत का आलिंगन करते तो उनकी मृत्यु सकाममृत्यु-पण्डितमरण या शहीद की मौत कहलाती । अपने जीवनकाल में भी उन्हें उन दुःखों,कष्टों या मृत्यु का कोई खटका न होता । जनता उन्हें हाथों में उठा लेती। वे लोकप्रिय बन जाते । जनता उनकी मृत्यु पर शोक के आंसू बहाती । वे स्वपर कल्याण के हेतु कष्ट सह कर यदि मृत्यु पाते,तोवह उन्हें अमर बना जाती। वह मृत्यु उनके जीवन को सार्थक कर देती । उनकी वह मृत्यु वरदानरूप हो जाती । राष्ट्र, समाज और कुल की नैतिक मर्यादाओं के घातक पापकर्म करके, सदाचार को तिलांजलि दे कर जब वे पापात्मा जेलों में दी जाने वाली पूर्वोक्त यातनाएँ बेमन से सह कर न चाहते हुए भी रिब-रिब कर मरते हैं तो उनकी वह अकाममृत्यु (अकालमृत्यु) उनके लिए अभिशापरूप बनती है। जनता के लिए उनकी मृत्यु खुशी का कारण बनती है। उनके अपने लिए दु:खदायक तो बनती ही है ; परलोक में भी उन्हें वह दुर्गति का मेहमान बना देती है । इस लोक में जेल आदि के जो उन्होंने कष्ट सहे, उनकी अपेक्षा अनेकों गुना भयंकर असह्य कष्ट उन्हें परलोक में मिलता है। मतलब यह है कि वे अपना मनुष्यजन्म सार्थक नहीं कर पाते और न ही आगे की जिंदगी के लिए कोई अच्छी कमाई कर जाते हैं। एक मनुष्यजन्म को खो देने पर भविष्य में उन्हें हजारों-लाखों जन्मों तक पुनः मनुष्यजन्म मिलना दुष्कर हो जाता
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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