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________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव २६५ विश्रामः पादपतनमासनं . गोपनं तथा । खण्डस्य खादनं चैव, तथाऽन्यन् माहराजिकम् ॥२॥ पद्याऽग्न्युदक - रज्जूनां प्रदानं ज्ञानपूर्वकम् । एताः प्रसूतयो ज्ञयाः, अष्टादश मनीषिभिः ॥ ३॥ अर्थात्-(१) भलनं - आप डरें नहीं,मैं आपकी सहायता करूँगा, ऐसे वचनों द्वारा चोर को प्रोत्साहन देना, (२) कुशलं-मिलने पर चोरों से कुशल मंगल पूछना, (३) तर्जा-चोरों को हाथ आदि से इशारा करना, (४) राजभाग-राजा का देय भाग न देना, (५) अवलोकन-चोरी करते हुए देखकर भी उपेक्षा करना, (६) अमार्गदर्शन–'चोर किधर गये हैं ?' ऐसा पूछने पर जानते हुए भी दूसरा रास्ता बताना या ठीक न बतलाना; (७) शय्या-चोरों को सोने के लिए शय्या, खाट आदि देना, (८) पदभंग - चोरों के पैरों के निशान (पशु आदि चलाकर) मिटा देना, ताकि पता न लगे, (8) विश्राम-अपने घर में चोरों को विश्राम देना, (१०) पादपतन-चोरों को प्रणाम आदि करके या जाहिर में प्रतिष्ठा देकर उनका सम्मान करना, (११) आसन–'आइये बैठिये' इत्यादि कह कर चोरों को आसन देना, (१२) गोपन - चोरों को अपने यहाँ छिपाना, अथवा किसी के पूछने पर दूसरी बातों में लगा कर चोरी पर पर्दा डालना, (१३) खण्डखादन-चोरों को प्रेमपूर्वक मिठाइयाँ खिलाना, या आग्रहपूर्वक भोजन कराना, (१४) माहराजिकचोरों को 'महाराज' !,सरकार !,ठाकुर साहब !,हजूर!, बाबूजी ! इत्यादि आदरसूचक शब्दों से बुलाना अथवा लोगों में उस चोरी की जानकारी हो जाने पर चोरी का माल दूसरे राष्ट्र में जाकर बेच देना, (१५) पद्या-प्रदान–बहुत दूर से आने के कारण थके हुए चोरों के लिए पैर धोने हेतु गर्म पानी व मालिश के हेतु तेल आदि वस्तुएँ देना, (१७) अग्निदान—चोरों को भोजनादि बनाने के लिए अग्नि देना, (७) उदकदानपीने के लिए उन्हें ठंडा पानी देना और (१७) रज्जुप्रदान–चोरी करके लाये हुए पशुओं को बाँधने के लिए रस्सी आदि देना। इन १८ दोषों को बुद्धिमान चोरी की प्रसूतियाँ (उत्पत्ति कारण) समझें । चोरों के साथ जानबूझ कर पूर्वोक्त व्यवहार करने वाले को ये १८ दोष लगते हैं। इसीलिए शास्त्रकार ने संकेत किया है'अठारसकम्मकारणा' यानी चौर्यकर्म के ये १८ कारण हैं। इन १८ कारणों में से किसी भी कारण का पता लगते ही पुलिस का सिपाही चोरी के अपराध में उसे गिरफ्तार कर सकता है; और पूर्वोक्त प्रकार का कठोर दंड उसे दे सकता है। चोरी के कटुफल : अन्य गतियों में पूर्वोक्त मूलपाठ में शास्त्रकार ने चोरी करने वालों को मनुष्यलोक में क्याक्या दंड मिलता है ? उनकी मानसिक-शारीरिक स्थिति कितनी भयंकर होती है ?
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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