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________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान - आश्रव २६३ कोयला पीस कर या काला रंग उनके हाथ, पैर और मुँह आदि अंगों पर पोता जाता है । उनके सिर के बाल उड़ती हुई धूल से भरे होते हैं। सिर के बाल कुसुम्भे के लाल रंग या सिंदूर से लाल कर दिये जाते हैं । मृत्यु के डर से उनका सारा शरीर चिकने पसीने की धारा से लथपथ हो जाता है । उन्हें अब अपने जीने की आशा बिलकुल नहीं रहती । वधिकों ( जल्लादों) को देख कर भय के मारे वे कांपने लगते हैं; उनके पैर लड़खड़ाने लगते हैं । उन्हें देखने के लिए चारों ओर से पागलों की तरह नरनारियों की भीड़ उनके चारों ओर जमा हो जाती है । नगरनिवासी भी उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ते हैं । उस समय प्यास के मारे उनके कंठ, ओठ जीभ और तालु सूख जाते है और वे पानी की याचना करते हैं, लेकिन निर्दय सिपाही उन्हें एक घूंट भी पानी नहीं देते । जिस समय उनको वध्यवेष पहना कर नगर के बीचोबीच हो कर ले जाया जाता है, उस समय वे दीनातिदीन, रक्षाहीन, शरणहीन, अनाथ, अबांधव, वन्धुओं द्वारा परित्यक्त और असहाय हो कर चारों दिशाओं में कातर दृष्टि से देखते हैं । मौत के भय से वे अत्यन्त उद्विग्न हो जाते हैं । मृत्युदंड के विविध रूप -- उनमें से कई चोरों के अंग के तिल-तिल के समान छोटे-छोटे टुकड़े किये जाते हैं। शरीर के एक भाग से काटे हुए वे टुकड़े खून से लिपटे होते हैं, जो उन्हें ही खिलाये जाते हैं । कई अपराधी चोरों को पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों से भरे हुए चमड़े के थैलों से पीटा जाता है; अथवा फटे हुए बाँसों से मार-मार कर उनका अंग-अंग ढीला कर दिया जाता है । कई अपराधियों के हाथ-पैर वध्यभूमि में काट लिये जाते हैं और पेड़ की शाखाओं से बाँध कर लटका दिये जाते हैं; जहां वे अत्यन्त करुण विलाप करते हैं । कई अपराधियों के दोनों हाथ और दोनों पैर बाँध कर पहाड़ की चोटी पर से उन्हें नीचे लुढ़का दिया जाता है । बहुत ऊँचे से गिरने तथा ऊबड़-खाबड़ पत्थरों पर गिरने के कारण उनका शरीर चूर-चूर हो जाता है । कई पापकर्म करने वाले चोर हाथी के पैरों तले कुचलवा कर मौत के घाट उतार दिये जाते हैं । कुछ चोरों के अंग-प्रत्यंग भोंथरे कुल्हाड़े से धीरे-धीरे काटे जाते है; जिससे उन्हें बहुत ही वेदना होती है और उनके प्राण भी जल्दी नहीं निकलते । कई दुष्ट चोरों के कान, नाक और ओठ काट लिये जाते हैं, आँखें निकाल ली जाती हैं, दांत और अंडकोश उखाड़ लिये जाते हैं, उनकी नसें ढीली कर दी जाती हैं; और फिर उन्हें वध्यभूमि में ले जाकर तलवार के घाट उतार दिया जाता है ।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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