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________________ २६२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र सवार हो जाता है; वे चोरी किये बिना नहीं रहते। मध्ययुग से समाज-व्यवस्था में कुछ ऐसी सामाजिक खर्चीली कुरूढ़ियाँ घुस गई हैं कि प्रामाणिकता या ईमानदारी से पैसा कमाने वाले मनुष्य के लिए जिन्हें निभाना बहुत ही कठिन होता है। इस फिजूल खर्ची की पूर्ति के लिए मनुष्य चारों तरफ हाथ-पैर मारता है । जब किसी तरह से पूर्ति होती नहीं देखता तो वह चोरी आदि अनैतिक उपायों का सहारा लेता है। चोरी में प्रवृत्त होने वाले इन तीन कोटि के व्यक्तियों के अलावा चौथे पेशेवर चोर होते हैं, जो चोरी करने में सिद्धहस्त होते हैं; पकड़े जाने पर भी अधिकारियों को रिश्वत देकर छूट जाते हैं। फिर भी सौ सुनार की तो एक लुहार की' इस कहावत के अनुसार कभी न कभी वे रंगे हाथों पकड़े ही जाते हैं और उन्हें इन भयंकर यातनाओं का सामना करना पड़ता है । मगर वे बराबर सजा पाने पर भी इतने ढीठ हो जाते हैं कि फिर चोरी के निन्द्यकर्म में प्रवृत्त हो जाते हैं। इतना जरूर है कि उनके लिए चोरी बहुत ही महंगी और कष्टसाध्य साबित होती है । वे इतना समय और इतनी शक्ति यदि ईमानदारी से कमाने में लगाते तो उनका जीवन सुखी और शान्तिमय होता । पर जिसको एक बार चोरी की चाट लग गई,मुफ्त में धन पाने की धुन सवार हो गई, वह इन सजाओं की कोई परवाह नहीं करता । जैसे पतंगा रोशनी देखते ही उस पर टूट पड़ता है, वैसे ही ऐसे धनलोलुप लोग सम्पत्ति को देखते ही उसे हड़पने के लिए टूट पड़ते हैं, अपनी जान तक को न्योछावर कर देते हैं। 'उवणीया रायकिंकराण .... णियंगमि खुत्ता'-ऐसे पेशेवर या ढीठ चोरों को वेष बदलने, छलकपट और झूठफरेब करने एवं हजारों झूठ बोल कर मीठी-मीठी बातों से चोरों के मन की बात निकलवाने में प्रवीण वधशास्त्रज्ञ राजपुरुषों (सिपाहियों) के हवाले किया जाता है। वे उन भयंकर चोरों को न्यायाधीश द्वारा सुनाई हुई प्राणदंड की सजा को अमली रूप देते हैं । प्राणदंड देने से पहले उस चोर के साथ कितना निर्दय व्यवहार किया जाता है; तथा कैसी-कैसी भयंकर यातनाएं दी जाती हैं, इसका शास्त्रकार ने विशद वर्णन किया है। यहाँ उसे दोहराने की आवश्यकता नहीं । वध्यस्थान में ले जाते समय की दशा का वर्णन भी बड़ा रोमांचक है। जिनको प्राणदण्ड दिया जाता है,उनके गले में एक ढोल बाँधा जाता है,जो प्रायः उन्हीं से बजवाया जाता है । ढोल बजाने या चलने में सुस्ती करने पर वध करने के लिए नियुक्त राजकिंकर (जल्लाद) उन्हें जोर से धक्का देते हुए पीछे से धकेलते जाते हैं। वध्यभूमि पर ले जाते समय गुस्से से अत्यन्त लाल-लाल आँखें किए जल्लाद यमदूत के समान उनकी मुश्कें खूब कस कर बाँधते हैं तथा उन्हें वध्य (मौत की सजा पाने वाले) की खास पोशाक पहनाते हैं, उन्हें लाल कनेर के खिले हुए फूलों की माला पहनाते हैं, जो वध्यदूत के समान वध्य को पहिचानने का एक चिह्न होती है। फिर
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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