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तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव
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मनुष्य के मन की तह तक पहुंच गए हैं। उनका यह स्पष्ट मनोविश्लेषण है कि जो व्यक्ति इन्द्रियों को जरा भी वश में नहीं कर सकते; चटपटी और मसालेदार चीजें तथा विविध मिठाइयाँ एवं मांस अंडे आदि तामसी पदार्थों के खाने के शौकीन हैं, शराब, गांजा, भांग, अफीम आदि नशीली चीजों के पीने के आदी हैं, बढ़िया भड़कीले कपड़े पहनने के लिए लालायित रहते हैं; हाथ-पैर हिलाना नहीं चाहते; आलसी बन कर बैठे-बैठे खाना चाहते हैं, नाटक, सिनेमा, खेलतमाशे, रंडियों के नाच-गान आदि देखने-सुनने में मस्त रहते हैं या स्पर्शेन्द्रिय के वशीभूत होकर पराई स्त्रियों को ताकते फिरते हैं, जिन्हें उनके रूप, सौन्दर्य, हावभाव, वाणी, अंगविन्यास आदि देखने-सुनने का व्यसन लगा है, अपने शरीर को मोहवश बारबार सजाते हैं, तेलफूलेल लगाते हैं, साबुन से रगड़-रगड़ कर धोते हैं; नई-नई सुन्दरियों के साथ सहवास करने के लिए उत्सुक रहते हैं; वे अक्सर अपनी इष्ट वस्तु को प्राप्त करने के लिए सभी उपाय अजमाते हैं; मुफ्त का धन कहीं से मिल जाय, इसी फिराक में रात-दिन रहते हैं । ऐसे व्यक्तियों को अपनी उपर्युक्त वासनाएँ, कामनाएँ और लालसाएँ पूरी करने के लिए धन जुटाना तो अवश्यम्भावी है । वे इन सब इन्द्रियविषयों की पूर्ति के लिए बिना मेहनत किये धन कहाँ से पायेंगे ? अतः अन्ततः वे चोरी का ही रास्ता अपनाते हैं । वे चोरी के इन बुरे नतीजों को बखूबी जानते हैं । लेकिन इन सब बुरी आदतों शिकार जो बन गये हैं, इन सब बुरे व्यसनों का चस्का जो लग गया है। इसलिए वे जानते - बूझते हुए भी चोरी के खतरनाक मार्ग को अपनाते हैं । चोरी से प्राप्त धन के द्वारा अपनी इन सब बुरी आदतों को पालते - पोसते हुए वे रंगे हाथों पुलिस द्वारा कभी न कभी पकड़ लिये जाते हैं और पूर्वोक्त यातनाओं के भागी बनते हैं ।
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पुणरवि ते कम्मदुवियद्धा- - इसीलिए शास्त्रकार ने इस पंक्ति में स्पष्ट कर दिया है कि इतनी यातनाएँ सह लेने के पश्चात् भी कई लोग चोरी को नहीं छोड़ते और मोह एवं अज्ञान से मूढ़ बन कर अपने दुर्व्यसनों को पालने - पोसने के लिए; फिर चोरी करते हैं, और फिर पकड़े जाते हैं । संसार में बहुधा अभाव के कारण चोरियाँ हुआ करती हैं । चोरी का जन्म भी सच पूछा जाय तो अभाव के कारण हुआ है । यह बात दूसरी है कि आगे चल कर मनुष्य या तो अपनी लालसाओं और आदतों का शिकार बन कर चोरी करने लगे; या मुफ्त में धन पाने का चस्का लग जाने के करण पेशेवर चोर बन जाए ।
कई पेशेवर चोर नहीं होते; वे अपने स्त्री और बालबच्चों को भूख से बिलखते देख कर त्रस्त हो जाते हैं, किन्तु उदरपूर्ति के लिए अन्य कोई रोजगार धंधा नहीं मिलता है, तो चोरी का मार्ग अपनाते हैं । ऐसे लोग सरकार के द्वारा दी जाने वाली सजा से घबरा कर पुनः इस दुष्कर्म को नहीं करते । लेकिन जिनको पूर्वोक्त महेच्छाएँ पूरी करने का भूत
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