SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव २८७ और निस्तेज (कान्तिहीन) रहते हैं । वे असफल, मलिन और दुर्बल हो जाते हैं, मुर्भाए हुए से रहते हैं। कई खांसी से पीड़ित या कई रोगों से घिरे रहते हैं, कई लोगों के शरीर आंव आदि अपक्वरस से पीड़ित रहते हैं । उनके नख, केश, दाढ़ी-मूछों के बाल बढ़ जाते हैं, वे बंदीगृह में अपने ही मलमूत्र में लिपटे रहते हैं। व्याख्या पूर्वसूत्र में शास्त्रकार ने अदत्तादान (चोरी) करने वाले विविध कोटि के मनुष्यों का स्वरूप बताया है तथा उनके द्वारा अजमाये जाने वाले तरीकों और उनमें पैदा होने वाले खतरों का वर्णन किया है, साथ ही चोरों की मनोवृत्ति और साहसिकता का वर्णन करते हुए उनके जीवन में सदा साथ लगी रहने वाली अशान्ति और बेचैनी का भी उल्लेख किया है । अब इस सूत्रपाठ के द्वारा पांचवें फलद्वार के रूप में चोरी से होने वाले बुरे नतीजों का, खासतौर से मनुष्यलोक में होने वाली उनकी दुःस्थिति का सजीव वर्णन किया है । मूलार्थ द्वारा सारा ही वर्णन स्पष्ट है ; फिर भी कुछ मुद्दों पर विवेचन करना आवश्यक समझ कर नीचे संक्षेप में यथावश्यक स्थलों का स्पष्टकरण कर रहे हैं 'परस्स दव्वं गवसमाणा गहिया य हया य बद्धरुद्धा य'-दूसरे के द्रव्य की तलाश में घूमने वाले जब रंगे हाथों पकड़े जाते है, तब पुलिस वाले तो उनकी खूब मरम्मत करते ही हैं, जनता भी जूतों, डंडों, लाठियों और मुक्कों से ऐसे लोगों की अच्छी तरह पूजा करती है। उनके पैरों में और हाथों में हथकड़ियाँ बेड़ियां डाल कर उन्हें जेल के सींकचों में बंद कर दिया जाता है। और फिर जेल में जेल के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा कितना बुरा हाल किया जाता है, इसका सजीव वर्णन शास्त्रकार ने तो किया ही है ; हर एक समझदार व्यक्ति भी ऐसे लोगों की जेलों में जो दुर्दशा होती है, उसे देखता-सुनता है। जेल में यातना देने के जितने भी साधन और तरीके हो सकते हैं, उन सबको जेलरों द्वारा भरपेट अजा माया जाता है। 'तुरियं अतिधाडिया ... गोम्मियभ.हिं'—इस लम्बे पाठ में जेल के अधिकारियों को सौंपने और जेल में निवास के दौरान जो-जो यातनाएँ बन्धन, मारपीट, अपमान, तिरस्कार, झिड़कियाँ, प्रहार आदि के रूप में दी जाती हैं, उनका स्पष्ट वर्णन किया है । इसमें कोई भी संदेह नहीं कि चोरी करने से प्राप्त होने वाले धन और उससे प्राप्त होने वाले सुख की कल्पना की तुलना में चोर की गिरफ्तारी होने पर उसे मिलने वाली मानसिक और शारीरिक यातनाएँ बहुत ही भयंकर और प्रचुर मात्रा में हैं। मामूली समझदार व्यक्ति भी यह घाटे का सौदा नहीं करेगा।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy