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________________ २८६ श्रीप्रश्नव्याकरण सूत्र कांपने लगते हैं, वध करने वाले जल्लादों को देख कर डरते हैं । फिर तिलतिल करके उनका शरीर छेदा जाता है, उन्हीं के शरीर से काटे हुए और खून से लथपथ छोटे-छोटे मांस के टुकड़े उन्हें खिलाये जाते हैं। छोटे-छोटे पत्थरों से भरे चमड़े के सैकड़ों थैलों से उन्हें मारा जाता है। पागलों की तरह मनुष्यों की अनियंत्रित भीड़ से वे घिर जाते हैं, नागरिक लोग उन्हें देखने लिए इकट्ठे हो जाते हैं । फिर वध्य (मौत की सजा पाने वाले व्यक्ति) की पोशाक पहने हुए नगर के बीचो-बीच हो कर उन्हें ले जाया जाता है। उस समय वे बेचारे दीनों से भी दीन, रक्षाहीन, अशरण, अनाथ, बन्धुहीन और सगे-सम्बन्धियों द्वारा त्यक्त होते हैं । एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर ताकते हुए, मृत्यु के भय से घबराए हुए वे अभागे कैदी वध्यभूमि के दरवाजे पर लाये जाते हैं और शूली की नोक पर उन्हें रखा जाता है, जिससे उनका शरीर छिन्न-भिन्न हो जाता है, और वहीं वध्यभूमि में उनके अंग-अंग के ट्रकड़े-टुकड़े कर दिए जाते हैं। उनमें से कई करुणाजनक विलाप करते हैं, उन्हें वृक्षों की शाखाओं पर लटका दिया जाता है। कुछ को दोनों हाथ-पैर बांध कर पर्वत की चोटी से नीचे लुढका दिया जाता है । ऊँचाई से गिरने के . कारण वे ऊबड़-खाबड़ पत्थरों की चोट सहते हैं। पापकर्म करने वाले उन चोरों को भोंथरे कुल्हाड़े द्वारा अठारह जगह से खण्डित किया जाता है। कई चोरों के कान, ओठ और नाक काट लिए जाते हैं, आंखें निकाल ली जाती हैं, दांत उखाड़ लिए जाते हैं और अंडकोश काट दिये जाते हैं, जीभ खींच कर बाहर निकाल ली जाती है,कान और शिराएं काट ली जाती हैं और बाद में वे वध्यभूमि में ले जाये जाते हैं। सरकारी नौकरों द्वारा कितने ही चोर तलवार से काट दिए जाते हैं, कई लोगों के हाथ-पैर काट लिए जाते हैं और उन्हें देश से निर्वासित कर सीमा के बाहर छोड़ दिया जाता है। कई जिंदगीभर कैद खाने में बंद कर दिए जाते हैं। पराए धन के लोभी कई चोरों को कैदखाने की अर्गला और दोनों बेड़ियां डाल कर रखा जाता है। कैदखाने में उनके पास का सर्वस्व धन छीन लिया जाता है। वे उनके कुटुम्बियों द्वारा छोड दिए जाते हैं, मित्रों से तिरस्कार पाते हैं, निराश हो जाते हैं। बहुत से लोगों द्वारा धिक्कारे जा कर वे लज्जित किए जाते हैं, अथवा वे अपने परिवार को लजाते हैं,निर्लज्ज हो जाते हैं। वे निरन्तर भूख से पीड़ित रहते हैं। वे पापी सर्दी-गर्मी और प्यास की असह्य वेदना से व्याकुल रहते हैं। उनके चेहरे मलिन
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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