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________________ २८२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र ली जाती है तथा कान और शिराएँ–नसें काट ली जाती हैं, फिर उन्हें (पणिज्जते) वध्यभूमि में ले जाया जाता है (य) और वहाँ (छिज्जते असिणा) तलवार से काट दिया जाता है, (छिन्नहत्थपाया) हाथ-पैर, कटे हुए उन चोरों को (निव्विसया) देशनिकाला दे कर, देशनिर्वासित करके (पमुच्चंते) राजपुरुषों द्वारा छोड़ दिया जाता है। (य) और (केई) कई तो (जावज्जीवबंधणा) उम्रभर को कैद में (कोर ति) रखे जाते हैं । (केइ) कितने ही (परदव्वहरणलुद्धा) दूसरों के धन को हरण करने में लुब्ध-आसक्त मनुष्यों को (कारग्गलनियलजुयलद्धा) कारावास में अर्गला लगा कर दोनों पैरों में बेड़ियाँ डाल कर बन्द कर दिया जाता है, (चारगाए) वहाँ कारागार में ही (हयसारा) उनका सारा धन छीन लिया जाता है। इस तरह वे (सयणविप्पमुक्का) अपने सगे-सम्बन्धियों द्वारा छोड़ दिये जाते हैं, (मित्तजणनिरक्खिया) मित्र लोग उन्हें नहीं रखते, अथवा (तिरक्कया) मित्रजन उनका तिरस्कार करते हैं, इससे वे (निरासा) निराश हो जाते हैं, (बहुजणधिक्कारसद्दलज्जायिता) अनेक लोगों द्वारा धिक्कार हैं तुम्हें इस प्रकार कहे जाने से लज्जित होते हैं अथवा .अपने परिवार को लज्जित करते हैं, ऐसे उन (अलज्जा) निर्लज्ज मनुष्यों को (अणुबद्धखुहा) निरन्तर भूख लगी रहती है। तथा वे (पारद्धा) अभिभूत या अपराधी (सोउण्हतण्हवेयणादुग्घट्ट-घट्टिया) सर्दी, गर्मी और प्यास की असह्य वेदना से कराहते रहते हैं (विवन्नमुखविच्छविया) उनका चेहरा फोका और कान्तिहीन रहता है (विहलमइलदुब्बला) वे हमेशा असफल, मलिन और दुर्बल रहते हैं, (किलंता) ग्लानि से युक्त-मुाए हुए रहते हैं, (कासंता) कई खांसते रहते हैं, (य) तथा (वाहिया) अनेक रोगों से घिरे रहते हैं, अथवा (आमाभिभूयगत्ता) भोजन भलीभांति हजम न होने के कारण अपक्वरस से उनका शरीर पीड़ित रहता है । (परूहनहकेसमंसु-रोमा) उनके नख, केश, और दाढ़ी-मूछों के बाल और रोम बढ़ जाते हैं, वे (तत्थेव) वहीं कैदखाने में (णियगंमि छग-मुत्तमि) अपने टट्टी-पेशाब में ही लिपटे हुए रहते हैं। मूलार्थ—पहले कहे अनुसार दूसरों के धन को हरण करने की फिराक में लगे हुए बहुत-से लोग पुलिस आदि द्वारा रंगे हाथों या बाद में पकड़ लिए जाते हैं, फिर उन्हें पीटा जाता है, रस्सों से बांधा जाता है, और जेल की कोठरी में बंद कर दिया जाता है । इसके पश्चात् शीघ्र ही उन्हें सरेआम घूमाया जाता है और बड़े शहर में चोर पकड़ने वाले
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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