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________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव २८३ चौकीदारों, जेल के अधिकारियों या मीठी-मीठी बातें बना कर भेद निकालने वालों को सौंपदिया जाता है। उनके द्वारा उनचोरों को कपड़े के कोड़ों से पीटा जाता है,सिपाही उन्हें तीखे व कठोर वचनों से डांटते फटकारते हैं,उनकी गर्दन पकड़ कर धक्का देते हैं, इससे वे खिन्नचित्त होते हैं, फिर उन्हें नरकावास के समान जेल को कालकोठरी में जबर्दस्ती घुसा कर बंद कर दिया जाता है । वहां भी जेल के अधिकारियों द्वारा मार, झिड़कियों व कटुवचनों की बौछार होती है, जिससे वे दुःखित होते हैं। वहाँ कभी कपड़े छीन कर वे वस्त्ररहित कर दिये जाते हैं, कभी उन्हें मैले कुचैले-फटे और चीथड़े जैसे वस्त्र पहिनने को दिए जाते हैं । जेल के निर्दयी कर्मचारी अधिकारी बार-बार उन कैदियों से अनेक प्रकार की रिश्वतें मांगने में तत्पर रहते हैं। जेल के सिपाहियों द्वारा वे अनेक प्रकार के बन्धनों से जकड़ दिये जाते हैं। वे बन्धन कौन-कौन से हैं ? काठ की बेड़ी, लोह की बेड़ी, बालों की बनी हुई रस्सी, जिसके किनारे पर रस्सी बंधी रहती है, ऐसा एक काठ, चमड़े का मोटा रस्सा, लोह की सांकल, हथकड़ी, चमड़े का पट्टा, पैर बांधने की रस्सी तथा निष्कोटन नामक एक विशेष बंधन, इन और ऐसे ही अन्य दुःख पैदा करने वाले कैदखाने के खास विविध उपकरणों से उन अभागों के शरीर को सिकोड़ कर और मोड़ कर बांधा जाता है । वे लकड़ी के एक प्रकार के यंत्र से दबाये जाते हैं, किवाड़ वाली कोठरी में बंद किए जाते हैं, लोह के पांजरे में डाल दिए जाते हैं, भूमिगृह में बंद किए जाते हैं, कभी कुए में उतार दिए जाते हैं, कभी जेल के सींखचों में बंद किए जाते हैं, कभी बैलों के कंधों पर रखा जाने वाला जूवा उनके कंधों पर रखा जाता है, कीलें ठोकी जाती हैं, कभी गाड़ी का पहिया उनके गले में डाला जाता है, कभी उनके पैर, बाहें और सिर थंभे के साथ कस कर बांध दिए जाते हैं, कभी पैरों को ऊपर करके बांध कर लटका दिए जाते हैं, इस प्रकार अधर्मी, निर्दय जेल के कर्मचारियों द्वारा उनको यातनाएं दी जाती हैं । फिर गर्दन नीचे झुका कर उनको छाती और सिर को कस कर बांधा जाता है, जिससे उनकी सांस ऊपर जाते समय रुक जाती है या उनकी आंतें ऊपर को आ जाती हैं,डर के मारे उनका हृदय धड़कने लगता है, फिर उनको मोड़ा और उलटा किया जाता है और बांधा जाता है, जिससे वे दुःखभरे निःश्वास छोड़ते हैं। उनके सिर को चमड़े की रस्सी से कसकर
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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