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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र खरफरूस कट्ठ-लेट्ठ- पत्थर-पणालि-पणोल्लि मुट्ठि-लया - पाद - पहि-जाणु - कोप्परपहारसंभग्गमहियगत्ता) वेंतों से, डंडों से, लाठियों से, लकड़ी, ढेले, पत्थर, लम्बे लट्ठ मारने के डंडे से, मुक्कों, घूंसों, लातों, पैरों, एड़ियों; घुटनों व कुहनियों आदि से प्रहार करके अंग-अंग का कचूमर निकाल दिया जाता है और घायल कर दिया जाता है । ( अट्टारसम्मकारणा) अठारह प्रकार के चोर और चोरी के कारणों को लेकर ( जाइयंगमंगा) उनके अंग-अंग पीड़ित कर दिये जाते हैं । वहाँ उन ( कलुणा) करुणा के पात्र दयनीय अपराधियों के ( सुक्कोट्ठकंठगलकतालुजीहा) ओठ, कंठ, गला, तालु और जीभ सूख जाते हैं, (विगयजीवियासा) उन्हें जीने की आशा नहीं रहती ( तहादिया ) प्यास के मारे बेचैन ( वरागा ) बेचारे वे (पानीयं जायंता) पानी मांगते हैं, (तं पियण लभंति) पर, उसे भी वे नहीं पाते । (य) और ( तत्थ ) वहाँ — कैदखाने में (झपुरिसेह) वध के लिए नियुक्त पुरुषों - जल्लादों द्वारा ( धाडियंता) वध्यस्थान पर उन्हें धकेल कर या घसीट कर ले जाया जाता है । उस समय पडह-घट्टित- कूडग्गह- गाढ - रुट्ठ- निसट्ठ- परामट्ठा) अत्यन्त कर्कश ढोल बजाते हुए राजपुरुषों द्वारा धकेले जाते हुए, एवं अत्यन्त रोष से भरे हुए राजपुरुषों - चांडालों द्वारा फांसी के लिए दृढ़तापूर्वक पकड़े हुए होने से अत्यन्त अपमानित वे ( वज्झकर कडिजुयनियत्था ) मृत्युदंड के समय पहिनाए जानें वाले विशेष कपड़े के जोड़े को पहने हुए, तथा (सुरत्तकणवीर- गहिय-विमुकुलकठेगुण-बज्झदूतआविद्धमल्लदामा ) खिले हुए लाल कनेर के फूलों से गूंथी हुई वध्यदूत-सी माला वध्य के गले में डाली जाती है, जो उस की मृत्यु की सजा को स्पष्ट सूचित करती है, ( मरणभयुप्पणसेद— आयत्तणेहुत्तु पियकिलिन्नगत्ता ) मृत्यु के भय से उन्हें पसीना छूट जाता है, उस पसीने की शरीर पर फैली हुई चिकनाई से उनका सारा शरीर चिकना हो जाता है और भीग जाता है । ( चुण्णगु' डियसरीररयरेणुभरियकेसा) कोयले आरि के चूरे से उनके शरीर पर लेपन किया जाता है और हवा से उड़कर लगी हुए धूल से उनके केश अत्यन्त रूखे और धूल भरे हो जाते हैं। साथ ही उनके (कुसुम्भगोकिन्नमुद्धआ ) सिर के बाल लाल कुसुम्भे के रंग से रंजित कर दिये जाते हैं, (छिन्नजीवियासा) उनकी जीने की आशा क्षीण हो जाती है । ( घुन्नंता ) भय से विह्वल होने के कारण डगमगाते हुए, ( वज्झयाण भीया) वध करने वालोंजल्लादों से हरदम भयभीत रहते हैं अथवा ( वज्झपाणपीया) मार डाले जायेंगे, इस भय से प्राणों के प्रति अत्यन्त आसक्त हैं, (तिलं तिलं चेव छिज्जमाणा ) तिल २८० •
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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