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________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव २७६ उनके अंग सिकुड़ जाते हैं, मुड़ जाते हैं और ढीले हो जाते हैं । (य) और (निरुच्चारा) जेलखाने की कालकोठरी में बंद किये जाने के कारण उनका टट्टी-पेशाब रोक दिया जाता है ; अथवा बोलने पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है, (असंचरणा) इधर-उधर घ मना-फिरना बंद कर दिया जाता है। __ (एया) ये (अन्ना य) और दूसरी (एवमादीओ वेयणाओ) इसी प्रकार की वेदनाएँ (पावा) वे पापी (पार्वेति) पाते हैं। (कौन ?) (अतिदिया) अपनी इन्द्रियों को वश में नहीं रखने वाले, (वसट्टा) विषयों के गुलाम होने से पीड़ित, (बहुमोहमोहिता) अत्यन्त मोह-आसक्ति के कारण मूढ़ बने हुए (परधणंमि लुद्धा) पराये धन में लुब्ध एवं (फासिदियविसयतिव्वगिद्धा) स्पर्शेन्द्रिय के विषय में तीव्र आसक्त, (इत्थिगयरूवसद्दरसगंधइट्ठरतिमहितभोगतण्हाइया) स्त्रीसम्बन्धी रूप, शब्द, रस, व गंध में इष्ट, रति एवं वांछित भोग (सहवास) को तृष्णा से व्याकुल (य) तथा (धनतोसगा) केवल धन मिलने से ही संतुष्ट होने वाले (जे य नरगणा गहिया) सरकारी आदमियों द्वारा गिरफ्तार किये गए जो मनुष्यगण-चोर हैं, वे (पुणरवि) फिर भी (कम्मदुम्वियड्ढा) पापकर्म के दुष्परिणाम को नहीं समझने वाले उन (वहसत्थपाढयाणं) वधशास्त्र के पढ़ने-पढ़ाने वाले, (विलउलोकारकाणं) दुष्ट-अन्याय युक्त कर्म करने वाले, (लंचसयगेण्हगाणं) सैकड़ों रिश्वतें लेने वाले (कूड-कपड-माया-नियडिआयरण-पणिहिवंचणविसारयाणं) जो न्यूनाधिक तौल-नाप आदि करने में, वेश और भाषा को बदलने में, माया, छल, धूर्तता और फरेब एवं धोखेबाजी के आचरणअमल करने में, गुप्तचर-सम्बन्धी वंचना में विशारद-प्रवीण हैं, (निरयगतिगामियाणं) नरकगति के मेहमान, हैं (बहुविहअलियसतजंपकाणं) अनेक प्रकार के सैकड़ों झूट बोलने वाले हैं, (य) और (परलोयपरंमुहाणं) परलोक से विमुख यानी लापरवाह बने हुए हैं, ऐसे (राजकिंकराणं) राजपुरुषों-सरकारी नौकरों-को (उवणीया) सजा के लिए सौंप दिये जाते हैं। (य) और (तेहिं) उन राजकर्मचारियों द्वारा (आणत्तजीयदंडा) जिन्हें प्राणदंड-मृत्युदंड की आज्ञा दी गई है,उन चोरों को, (तुरियं) शीघ्र ही,(पुरवरे) नगर में (सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु) सिंघाड़े के आकार वाली तिकोन जगह, जहाँ तीन रास्ते या बाजार मिलते हैं वहाँ, जहाँ चार रास्ते या बाजार मिलते हैं वहाँ चौक में,विशाल प्रांगण में, चारों ओर मुंह यानी द्वार वाले किसी देवमन्दिर आदि में, विशाल आम राजमार्ग [चौड़ी सड़क पर तथा साधारण रास्तों पर (उग्घाडिया) जनसमूह के सामने जाहिर में लाये जाते हैं ; फिर (वेत्त-दंड-लउड
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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