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________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान - आश्रव २६७ झूठा जमाखर्च करते हैं, सौ रुपये दे कर हजार रुपये लिख देते हैं, किसी की धरोहर को हडप जाते हैं, पराई अमानत को डकार जाते हैं, इत्यादि प्रकार की चोरियों की गणना व्यावसायिक चोरी में होती है। झूठे विज्ञापनों द्वारा लोगों को धोखा दे कर रुपये बटोरना, नकली कंपनी खोल कर लोगों को चकमा देना, बाजार के भावों में अचानक वृद्धि कर देना आदि भी व्यावसायिक चोरी है । साहसिक चोरी में उन चोरियों की गणना होती है, जो डाका डाल कर, आक्रमण करके, समुद्रयात्रियों को अचानक घेर कर लूट पाट की जाती है । सेंध लगा कर, घरों में घुस कर, ताला तोड़ कर तिजोरी तोड़ कर, घर फोड़ कर चोरी करना भी प्रसिद्ध चोरी है। ये सब तस्कर और परद्रव्यहरणकर्ता कहलाते हैं । इस तरह अनेक प्रकार की चोरियाँ करने वालों का उल्लेख शास्त्रकार ने किया है। चोरों के विविध लक्षण और प्रकार मूलपाठ में बताये हैं । उनका क्रमशः संक्षेप में हम विश्लेषण करते हैं छेया - चोरी करने वाले छेक यानी प्रवीण होते हैं । मनुष्य उत्तम कार्यों में दक्षता प्राप्त करे ; यही मानवीय नीति है, लेकिन उसी दक्षता का जब चोरी आदि अनीतिमय कार्यों में उपयोग होता है, तो वह दानवीय नीति कहलाती हैं । चोरी करने में चतुर लोग ऐसी सिफ्त से सफेदपोश बन कर सनसनीखेज चोरी करते हैं, जिससे सरकार भी उन्हें गिरफ्तार करने में असमर्थ रहती है । कई लोग चोरी में ऐसे प्रवीण होते हैं कि दिन दहाड़े बैंक या अन्य किसी भी फर्म पर छापा मार कर द्रव्य लूट लेते हैं । ऐसे चतुर लोग चोरी करने के नये-नये तरीकों का आविष्कार करते रहते हैं । चौर्यशास्त्र का अध्ययन करके ऐसे लोग चौर्यकला में दक्ष हो कर नित नये तरीके अजमाते रहते हैं । कयकरणलद्धलक्खा - इस पद ने शास्त्रकार सूचित करते हैं कि चोरी करने वाले बार-बार चोरी का अभ्यास करने से चोरी करने में सिद्धहस्त हो जाते हैं, अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं। हर एक काम पहले अल्पमात्रा में प्रारम्भ होता है । फिर उसका बार-बार अभ्यास करने से वह विशालरूप धारण कर लेता है । इसी प्रकार मनुष्य छोटी-छोटी चोरियाँ करके पहले चोरी का अभ्यास करता है । बाद में अवसर पाकर वह बड़ा चोर बन जाता है । वह चोरी करने में इतना अभ्यस्त हो जाता है कि कोई उसकी चोरी को सहसा नहीं पकड़ सकता । अथवा उस चोर का सामना करने में या उसे गिरफ्तार करने में बड़े-बड़े लोग व सरकारी अधिकारी तक भी असमर्थ रहते हैं । साहसिया - चोरी करने वाले अत्यन्त साहसी होते हैं । साहसहीन व्यक्ति चोरी सरीखे कामों में हाथ डालेगा तो रंगे हाथों पकड़ा जाएगा । चोरी जैसे खतरे
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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