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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र स्त्री का हरण करने वाले या स्त्रियों से धन लूटने वाले अथवा स्त्री का रूप बनाकर चोरी करने वाले, पुरुषों या बालकों का अपहरण करके ले जाने वाले, सेंध लगाने में चतुर, गिरहकट या गंठकटे, पराया धन उड़ाने वाले उचक्के, कुछ हाथ न लगने के कारण दूसरों के प्राण हरण करने वाले, वशीकरण विद्या तथा औषधि आदि के प्रयोग से मूछित करके लूटने वाले, एकदम झपट कर लूटने वाले, निरंतर सताकर या कुचल कर या धमकी दे कर लूटने वाले, गुप्त चोरियाँ करने वाले, गाय बैल आदि के चोर, घोड़ों के चोर, दासियों को चुराने वाले, अकेले ही चोरी करने वाले, घरों में से आभूषण चुराने वाले अथवा चोरों को बुला कर दूसरों के घरों में चोरी करवाने वाले चोरों को भोजन आदि देने वाले, छिप कर चोरी करने वाले, सार्थवाहों (बनजारों) को लूटने वाले, लोगों को चंकमे में डाल कर या विश्वासोत्पादक (मैं दुगुना सोना बना दूंगा इत्यादि प्रकार से, वचन बोल कर ठगने वाले, बन्दीघर (जेलखाने) से भाग कर या छूटकर लूटखसोट करने वाले, अथवा लोगों को पकड़ कर ले जाने वाले और उनसे मनमाना धन बटोरने वाले, तस्कर-व्यापार करने वाले या व्यवसाय में बेईमानी करके लूटने वाले और जिनकी बुद्धि रात-दिन अनेक प्रकार की चोरी करने में लगी हुई होती है, वे ही चोरी करते हैं। ये और इसी प्रकार के दूसरे लोग भी चोरी करते हैं, जो परद्रव्यों के के लोभ से अविरत (निवृत्त) नहीं हैं । जैसे कि विपुल बल या सैन्य और परिग्रह (परिवार या धन) वाले बहुत से राजा लोग, जो पराये धन में आसक्त होते हैं, अपने द्रव्य (राज्य, धन आदि) से असंतुष्ट होते हैं, दूसरे देशों पर चढ़ाई करते हैं । वे लोभी राजा दूसरों के द्रव्य को हथियाने के लिए अपनी फौज को हाथी, घोड़े, रथ और पैदल इन चार भागों में बांटते हैं । पक्के निश्चय वाले अच्छे योद्धाओं के साथ युद्ध करने में आत्मविश्वास वाले तथा मैं पहले लड़गा, मैं पहले लड़गा; इस प्रकार के गर्व से भरे हुए पैदल सैनिकों से घिरे हुए कमलपत्राकार, शकटाकार, सूई के आकार, चक्राकार, समुद्राकार, गरुडाकार इत्यादि विविध व्यूहरचनाओं (मोर्चों) वाली अपनी विस्तृत सेनाओं से दूसरे की सेनाओं को आच्छादित करके या शत्र -सेनाओं पर छा कर, उन्हें पराजित करके अन्य राजाओं की धन-सम्पत्तिलूट लेते हैं। दूसरे कितने ही राजा युद्ध के मैदानों में सबसे अगली पंक्ति में लड़ कर विजयी बने हुए कमर कसे
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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