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तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव
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रहने के लिए पहुंचते हैं । वे (अयसकरा) अपने को व अपने कुल को बदनाम करने वाले, (भयंकरा तक्करा) भयंकर चोर, (अज्ज कस्स दव्वं हरामोत्ति सामत्थं करेंति गुज्झं) गुप्त मंत्रणा करते हैं कि आज किसका या किसके यहां द्रव्य-धन चुराएँ ? (बहुयस्स कज्जकरणेसु विग्घकरा) वे बहुत-से लोगों के कर्तव्यों और कार्यों में विघ्न डालते हैं, (मत्त-प्पमत्त-पसुत्त-वीसत्यछिद्दघाती) वे नशे में पड़े हुए, लापरवाह, सोये हुए और विश्वस्त लोगों का मौका पा कर घात करते हैं, (वसणाब्भुदएसु हरणबुद्धी) दुर्व्यसनों या आफतों या उत्सवों-खुशी के मौकों पर उनकी बुद्धि में चोरी की भावना जागती है, (विगव्व रुहिरमहिया परेंति) वे भेड़ियों की तरह खून पीने को लालसा से युक्त हो कर चारों ओर भटकते रहते हैं, वे (नरवतिमज्जायं अतिक्कता) राजा के बनाए हुए सरकारी कानूनों की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं, (सज्जणजण-दुगुछिया) सज्जन लोगों को घृणा के पात्र, (सकम्मेहिं) अपने दुष्कमों के कारण (पावकम्मकारी) पापकर्म करने वाले (असुभपरिणया) अशुभ परिणामों से युक्त (य) तथा (दुक्खभागी) दुःख के भागी, (निच्चाइलदुहमनिव्वुइमणा) सदा मलिन, दुःखयुक्त एवं अशान्त मन वाले (परधणहरा) दूसरों के धन का हरण करने वाले वे (नरा) मनुष्य (इह लोके) इस लोक में (चेव) ही (वसणसयसमावण्णा) सैकड़ों संकटों से घिरे हुए (किलिस्संता) क्लेश पाते हैं । सू० ११ ॥ ___मूलार्थ-चोरी करने के स्वभाव वाले, पराये धन का हरण करने वाले, चौर्यकलानिपुण, कई बार चोरियां करने से अपने लक्ष्य को पाये हए, पर्याप्त साहस करने वाले, तुच्छ आत्मा, बड़ी महत्वाकांक्षा होने के कारण अत्यन्त लोभ में फंसे हुए, वाणी के चातर्य से अपने स्वरूप को छिपाने वाले अथवा वागाडम्बर से दूसरों को भ्रमित करने वाले, दूसरों के घनमाल पर अत्यन्त आसक्त सामने से सीधा प्रहार करने वाले, लिए हुए कर्ज को नहीं चुकाने वाले, विवाद होने पर की हुई संधि या प्रतिज्ञा को भंग करने वाले, खजाना आदि लूट कर राजा का अनिष्ट करने वाले, देशनिकाला दिए जाने के कारण जाति या समाज द्वारा बहिष्कृत, वन आदि में आग लगाने वाले या दंगा उपद्रव आदि करने वाले, गाँवों का सफाया करने वाले, नगरों के घातक, पथिकों को लूटने वाले, घर आदि जला देने वाले, तीर्थयात्रियों को लूटने-मारने वाले, हाथ को चालाको का प्रयोग करने वाले, जुआ खेलने वाले, चुंगी या कर वसूल करने वाले, कर्मचारी या कोतवाल,