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________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव २६१ हुए, कवच पहने हुए, तथा खास तरह के परिचयसूचक पट्ट (बिल्ले) मस्तक पर मजबूती से बाँध हुए, कंधों पर और हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिये हुए, शस्त्रास्त्र प्रहार से बचने के लिए ढाल और उत्तम कवच से चारों ओर ढके हुए, लोहे की जाली लगाए हुए, कवचों पर लोहे के कांटे लगाए हुए, वक्षस्थल के साथ ऊर्ध्वमुखी तूणीर (बाणों की थैली या भाथा) गले में बाँध हुए, हाथ में पाश. शस्त्र और ढाल लिए हुए, सैन्यसमूह की रणोचित रचना किए हुए, कठोर धनुष को सहर्ष हाथ में लिये हुए रहते हैं। समरभूमि में उनके हाथों से खींच कर छोड़े गये बाणों की वर्षा ऐसी लग रही है, मानो बादलों से मूसलधार बरसती हुई वर्षा से मार्ग व्याप्त हों। उक्त संग्राम में सैनिक अनेक धनुष, दुधारी तलवारों, फैंकने के लिए निकाली तथा उछाली हुई त्रिशूलों, बाणों, बांये हाथों में पकड़ी हुई ढालों, म्यान से निकाली हुई चमचमाती तलवारों, प्रहार करते हुए भालों, तोमर नामक बाण, चक्र, गदा, कुल्हाड़ा, मूशल, हल, शूल, लाठी, भिंडमाल, शब्बल (लोहे के बल्लम), पट्टिस नामक शस्त्र, चमड़े में बंधे हुए पत्थर गिलौल), द्र घणों (चौडे भालों), मुट्ठी में आ जाने वाले विशिष्ट पत्थर के शस्त्रों, मुद्गर, प्रबल आगल, गोफण (यंत्र में बंधे हुए पत्थर), द्रहण (कर्कट, बाणों के भाथों, कुवेणियों-नालीदार बाणों और आसन नामक शस्त्रों से सुसज्जित हैं । जिस युद्ध में दुधारी चमकृती तलवारों और चमचमाते प्रहरणों (शस्त्रों) के चलाने व फेंकने से आकाश बिजली की तरह उज्ज्वल प्रभा वाला हो जाता है । जहां पर शस्त्रप्रहार स्पष्ट होते हैं । जिस महायुद्ध में शंखों, भेरियों, उत्तम बाजों तथा अत्यन्त स्पष्ट आवाज वाले ढोलों के बजने की गम्भीर ध्वनि से हर्षित वीरों और कम्पित व क्ष ब्ध कायरों का बहुत जोर से कोलाहल हो रहा है । घोड़े. हाथी, रथ और पैदल योद्धाओं के फुर्ती से चलने से चारों ओर उड़ती हुई धूल गाढ़ अन्धकार से रणक्षेत्र को ढक रही है । तथा कायर मनुष्यों के हृदय को कंपाने और नेत्रों को व्याकुलित करने वाले. ढीले होने से इधर-उधर हिलते हुए ऊँचे मुकुटों, तीन सेहरे वाले ऊँचे मुकुटों, कानों के कुडलों और नक्षत्रों (एक प्रकार के गहनो) की जहाँ जगमगाहट हो रही है । साफ दिखाई देने वाली पताकाओं, बहुत ऊँची बाँधी हुई ध्वजाओं, विजयसूचक वैजयंती-पताकाओं तथा चलायमान चंवरों और
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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