SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव २५३ कांटे लगाए हुए (उरसिरमुहबद्ध - कंठतोण - माइतवरफलकरचित - पहकर सरहसखरचावकरकरंछियसुनिसितसरवरिसचडकरमुयंतघणचंडवेगधारानिवायमग्गे) वक्षः स्थल के साथ ऊर्ध्वमुखी बाणों की तूणीर-बाणों की थैली-भाथा कंठ में बांधे हुए, हाथ में पाश-शस्त्र और ढाल लिये हुए, सैन्यसमूह की रणोचित रचना किये हुए, कठोर धनुष को सहर्ष हाथ में लिए हुए, हाथों से खींच कर की हुई बाणों की प्रचंड वेग से बरसती हुई मूसलधार वर्षा के गिरने ते जहां मार्ग भर गये हैं, उस संग्राम में (अणेगधणु - मंडलग्ग - संधित - उच्छलियसत्ति - कणग - वामकरगहियखेडग - निम्मलनिक्किट्ठखग्ग - पहरंत कोंत - तोमरचक्क - गया - परसु - मुसल - लांगल- सूल - लउल - भिंडमाल-सब्बल-पट्टिस-चम्मेठ्ठदुघण-मोट्ठिय - मोग्गर - वरफलिहजंत-पत्थर-दुहण-तोण-कुवेणी-पीढकलिय- ईलीपहरणमिलिमिलिमिलत-खिप्पंत-विज्जुज्जलविरचितसमप्पहणभतले) अनेक धनुषों, दुधारी तलवारों, फैकने के लिए निकाली तथा उछाली हुई त्रिशूलों, बाण, बांये हाथों में पकड़ी हुई ढालों, म्यान से निकाली हुई चमचमाती हुई तलवारों, प्रहार करते हुए भालों, तोमर नामक बाण, चक्र, गदाएँ, कुल्हाड़ों, मूशल, हल, शूल, लाठियों, भिंडमाल, शब्बल (लोहे के बल्लमों),पट्टिस नामक शस्त्र, चमड़े में बंधे हुए पत्थर-गिलोल, द्रुघण (चौड़े भाले), मुट्ठी में आ जाने वाले विशेष पत्थर के शस्त्र, मुद्गर, प्रबल आगल, गोफण (यंत्र में बंधे हुए पत्थर), द्रुहण (कर्कर), वाणों के भाथों, कुवेणियाँनालीदार बाण और आसन नामक शस्त्रों से सुसज्जित तथा दुधारी चमकती तलवारों और चमचमाते प्रहरणों (शस्त्रों) के आकाश में फैकने से आकाशतल बिजली के समान उज्ज्वल प्रभा वाला हो जाता है। (फुडपहरणे) उस संग्राम में प्रकट-स्पष्ट शस्त्रप्रहार होता है, और (महारणसंखभेरिवरतूर-पउरपडुपडहाहयणिणायगंभीर-णंदित पक्लुभियविपुलघोसे) महायुद्ध में बजाये जाने वाले शंखों, भेरियों, उत्तम बाजों, अत्यन्त स्पष्ट आवाज वाले ढोलों के बजने की गंभीर ध्वनि से आनन्दित वीरों और कंपित व क्षुब्ध कायरों का बहुत जोर से हो हल्ला होता है । (हयगयरहजोहतुरितपसरितरयुद्धततमंधकार-बहुले) घोड़े, हाथी, रथ और पैदल योद्धाओं के फुर्ती से चलने से चारों तरफ फैली हुई धूलरूपी घने अंधेरे से व्याप्त उस युद्ध में, (कातरनरनयणहिययवाउलकरे) कायरजनों की आँखों और हृदय को व्याकुल करने वाले (विलुलियउक्कडवरमउड-तिरीडकुडलोडुदाम-डोविए) ढीले होने के कारण इधरउधर हिलते हुए ऊँचे मुकुटों, तीन शिखरों (सेहरों) वाले मुकुटों (ताजों), कुण्डलों तथा नक्षत्रनामक आभूषणों की वहाँ अत्यन्त जगमगाहट होती है, (पागडपडाग-उसिय
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy