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________________ २५४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र ज्झय-वेजयंति-चल-चामर-चलंतछत्तध कारगंभीरे) साफ विखाई देने वाली पताकाओं, बहुत ऊँची बांधी हुई ध्वजाओं, विजयसूचक वैजयन्ती पताकाओं तथा चलायमान चंवरों, और छातों से किये गए अन्धकार के कारण गम्भीर; (हयहेसिय-हत्थिगुलगुलाइय-रहघणघणाइय-पाइक्कहरहराइय-अप्फोडिय-सीहनाय-छेलिय-विघुटुक्कुट्ठ-कंठगयसद्द भीमगज्जिए) घोड़ों के हिनहिनाने से, हाथियों से चिंघाड़ने से,रथों को घनघनाहट से, प्यादों के हर-हर शब्द करने से, तालियों की गड़गड़ाहट से, सिंहनाद करने से, सीटी की तरह की आवाज करने से,जोर-जोर से चिल्लानसे,जोर से खिलखिला कर हंसने से, और एक साथ हजारों कंठों की ध्वनि से जहाँ भयंकर गर्जनाएँ होती हैं; (सयराह-हसंतरुसंत-कलकलरवे) जिसमें एक साथ हंसने और रोने या कष्ट होने का शोरशराबा कलकल शब्द होता है, (आसूणिय-वयण रद्दे) बीच-बीच में जो आंसुओं के साथ मुंह फुला कर बोलने से रौद्र हो जाता है, (भीमदसणाधरोह्रगाढदट्ठसप्पहरणुज्जयकरे) जिसमें भयावने दांतों से होठों को जोर से काटने वाले योद्धाओं के हाथ अचूक प्रहार करने में उद्यत हैं, (अमरिसवसतिव्व-रत्त-निदारितच्छे) रोष से उन योद्धाओं की आँखें लाल और तरेर रही हैं, (वेरदिठिकुद्धचिट्ठियतिवलीकुडिलभिउडोकयनिलाडे) वैरदृष्टि के कारण क्रुद्ध चेष्टाओं से उनकी भौंहें तनी हुई होने से ललाट पर तीन सल पड़े हुए हैं, (वहपरिणय-नरसहस्स-विक्कम-वियंभियबले) मारकाट में लगे हुए हजारों मनुष्यों के पराक्रम को देख कर जिस युद्ध में सेनाओं में पौरुष बढ़ रहा है, (वग्गंत - तुरग- रह- पहावित- समर- भड- आवडिय- छेय- लाघव - पहार-पसाधित - समुस्सिय (सविय) - बाहुजुयलमुक्कट्टहास - पुक्कंत • बोलबहुले) हिनहिनाते हुए घोड़ों और रथों से दौड़ते हुए समरभट यानी योद्धा तथा शस्त्रास्त्र चलाने में दक्ष और हस्तलाघव, प्रहार आदि में सधे हुए सैनिक जिसमें हर्ष से दोनों भुजाएँ ऊँची उठाए, खिलखिला कर ठहाका मार कर हंस रहे हैं, किलकारियाँ कर रहे हैं, (फुरफलगावरण - गहिय - गयवर - पत्थित - दरिय - भडखल-परोप्पर-पलग्ग-जुद्ध- गन्वित- विउसित- वरासि-रोस- तुरिय-अभिमुह-पहरंत-छिन्न करिकर-विभंगितकरे) चमकती हुई ढालें और कवच धारण किये हुए मस्त हाथियों पर चढ़ कर रवाना हुए भट शत्र ओं के भटों के साथ परस्पर युद्ध में संलग्न हैं, तथा युद्धकला में प्रवीणता के कारण घमंडी योद्धा जिसमें अपनी-अपनी तलवारें म्यान में से निकाल कर फुर्ती से परस्पर रोषपूर्वक प्रहार कर रहे हैं और हाथियों की सूडें काट रहे हैं, जिससे उनके भी हाथ कट रहे हैं, (अवइद्ध-निरुद्ध-भिन्न-फालिय-पगलियरुहिर कत-भूमिकद्दम-चिलिचिल्ल-पहे) जहाँ पर मुद्गर आदि से मारे गये, बुरी तरह
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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