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________________ २५२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र चोरों को भोजनादि देने वाले, छिप कर चोरी करने वाले, सार्थवाहों, बनजारों को लूटने वाले लोगों को भ्रम में डाल कर विश्वासोत्पादक ( मैं दुगुना सोना बना दूंगा आदि) वचन बोलकर ठगने वाले; (य) और (निरंगाहकारका) सरकार के द्वारा बंदी बनाए हुए लोगों में से जेल से छूट कर चोरी करने वाले, अथवा लोगों को पकड़ कर ले जाने वाले, (विप्लु पका) तस्करव्यापार करने वाले या व्यवसाय में बेईमानी करके लूटने वाले; (बहुविहतेणिक्ककरणबुद्धी) जिनकी बुद्धि रात-दिन अनेक प्रकार से चोरी करने में ही लगी हुई होती है, वे ही चोरी (करेंति) करते हैं । ( एते) ये (य) और ( एवमादी ) इसी प्रकार के ( अन्ने) अन्य लोग भी चोरी ( करेंति) करते हैं, (जे) जो ( परस्स दव्वाहि अविरया) दूसरे के द्रव्यों से — पर द्रव्य के लोभ से विरत नहीं हैं— निवृत्त नहीं हैं। (य) और ( विपुलबलपरिग्गहा ) विपुल बल या सैन्य और परिग्रह - धन या परिवार वाले ( बहवे ) बहुत से (रायाणो) राजा लोग, जो ( परधणम्मि) पराये धन में (गिद्धा ) आसक्त होते हैं, (सए दव्वे य असंतुट्ठा) अपने द्रव्य में असंतुष्ट हुए ( परविसए) दूसरे देशों पर ( अभिहणंति) चढ़ाई करते हैं (ते) वे (लुद्धा ) लोभी ( परधणस्स कज्जे) परधन को हथियाने के लिए ( चउरंगविभत्तबलसमग्गा) अपनी सारी सेना को चार अंगों में वांट देते हैं— रथ, गज, अश्व और पैदल इन चारों में फौज को विभक्त कर देते हैं । (निच्छ्यिवरजोहजुद्धसद्धियअहमहमितिदप्पिएह) पक्के निश्चय वाले अच्छे योद्धाओं के साथ युद्ध करने में आत्मविश्वास वाले, मैं पहले लडूंगा, मैं पहले लडूंगा - इस प्रकार के गर्व से भरे हुए, (सेन्नहि) पैदल सैनिकों से (संपरिवुडा ) घिरे हुए ( पउमपत्तसगड सूईचक्कसागरगरुलवू हातिएहि ) कमलपत्राकार, शकट — बैलगाड़ी के आकार, सूई के आकार, चक्राकार, समुद्राकार, गरुड़ाकार इत्यादि व्यूहरचनाओं ( मोर्चों) वाली ( अणिएहि ) अपनी सेनाओं द्वारा (उत्थरंता) दूसरों की सेनाओं को आच्छादित करते हुएअपनी विशाल फौज से विपक्ष की सेनाओं पर छा कर, (अभिभूय ) उन्हें पराजित करके - हरा कर ( परधणाई ) दूसरों की धन-सम्पत्ति को, (हरंति) लूट लेते हैं । ( अवरे) दूसरे ( रणसीसलद्धलक्खा ) युद्ध के मैदानों में अग्रिम पंक्ति में लड़ कर, जिन्होंने फतह पाई है, वे ( सन्नद्धबद्ध परियर- उप्पीलिर्याचधपट्टगहियाउहपहरणा ) कमर कसे हुए तथा कवच पहने हुए एवं विशेष प्रकार के चिह्नपट्ट - परिचयसूचक बिल्ले मस्तक पर मजबूती से बांधे हुए, कंधों पर और हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिए हुए, ( माढिवरवम्म गुडिया) शस्त्रास्त्रों के प्रहार से बचने के लिये ढाल, और उत्तम कवच चारों ओर ढके हुए (आवजालिका) लोहे की जाली पहने हुए ( कवयकंकडइया) कवचों पर लोहे के
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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