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________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादन-आश्रव २५१ नरपति-मर्यादामतिक्रान्ताः सज्जनजनजुगुप्सिताः स्वकर्मभिः पापकर्मकारिणोऽशुभपरिणताश्च दुःखभागिनो नित्याविलदुःखानिवृत्तिमनसः इहलोक एव क्लिश्यमानाः परद्रव्यहरा नरा व्यसनशतसमापन्नाः ॥सू०११॥ ___ पदार्थान्वय—(तं पुण) उस (चोरियं) चोरी को (तक्करा) चोरी करने के व्यसन वाले, (परदव्वहरा) दूसरे के द्रव्य का हरण करने वाले, (छेया) चालाक या चौर्यकलानिपुण, (कयकरणलद्धलक्खा) कई बार चोरियां करने से जो अपने लक्ष्य को पा चुके हैं, चोरी में अभ्यस्त होने से जो कई मौके पा चुके हैं, (साहसिया) पर्याप्त साहस-हिम्मत कर सकने वाले, बुलंद होंसले वाले, (लहुस्सगा) तुच्छ आत्मा, (अति महिच्छलोभगच्छा) बहुत बड़ी महत्त्वाकांक्षा होने के कारण लोभ में फंसे हुए, (ददरओवीलका) वाणी के चातुर्य से अपने स्वरूप को छिपाने वाले अथवा वागाडम्बर से दूसरों को लज्जित करने वाले, (य) और (गेहिया) दूसरों के धन माल पर गृद्ध-आसक्त (अहिमरा) सामने से सीधा प्रहार करने वाले, (अणभंजक) लिये हुए कर्ज को न चुकाने वाले, (भग्गसंधिया) विवाद होने पर की हुई संधि या प्रतिज्ञा को तोड़ने वाले (य) और (रायदुट्ठकारी) खजाना आदि लूट कर राजा का अनिष्ट करने वाले,(विसयनिच्छुढलोकबज्झा) देशनिकाला दिये जाने के कारण जनता (लोगों) द्वारा बहिष्कृत (उद्दोहक-गामघायग-पुरघायक-पंथघायग-आलीवग-तित्थभेया) वन आदि को जलाने वाले या उपद्रव (दंगा आदि) करने वाले, ग्राम-घातक, नगरघातक, राहगीरों को लूटने वाले, घर आदि जला देने वाले, तीर्थयात्रियों को लूटने मारने वाले, (लहुहत्यसंपउत्ता) हाथ की चालाकी का प्रयोग करने वाले, (जुइकरा) जुआरी, (खंडरक्खत्थिचोर-पुरिसचोर-संधिच्छेया) चुंगी या कर वसूल करने वाले कर्मचारी, या कोतवाल, स्त्री को चुराने वाले या स्त्री से धन लूटने वाले अथवा स्त्री का रूप बना कर चोरी करने वाले, पुरुषों या बालकों का अपहरण करके ले जाने वाले या बच्चों को उठाने वाले, सेंध लगाने में चतुर, (गंथिभेदग-परधनहरणलोमावहारा) गंठकटे, गिरहकट, पराये धन का हरण करने वाले, कुछ हाथ न लगने के कारण प्राणहरण करने वाले, वशीकरण विद्या आदि का प्रयोग करके लूटने वाले, (अक्खेवी) एकदम झपट कर लूटने वाले (हडकारका) जबरन हठपूर्वक लूट लेने वाले, (निम्मद्दग-गूढचोरक-गोचोरकअस्सचोरक-दासीचोरा य) निरन्तर सता कर-कुचल कर लूटने वाले, गुप्तचोर, गाय बैल आदि के चोर, घोड़ों के चोर, और दासीचोर, (एकचोरा) अकेले ही चोरी करने वाले, (ओकड्ढसंपदायकउच्छिंपकसत्थघातकबिलकोलीकारका) चोरों को दूसरों के घरों में बुला कर चोरी करवाने वाले, अथवा घरों से गहने निकलवाने वाले,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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