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________________ २४४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र अपरच्छंति वि य-दूसरे की नजर बचा कर छिप कर व परोक्ष में जो घनादि अपहरण करने का काम किया जाता है, वह 'अपराक्ष' नामक चोरी है। यह भी अदत्तादान के तुल्य होने से उसका पर्यायवाची माना गया है। एवमादीणि अणेगाइं नामधेज्जाणि होति—ये तीस नाम तो शास्त्रकार ने बताए हैं, इनके सिवाय और भी इसी प्रकार के अदत्तादान के नाम हो सकते हैं । इसे स्पष्ट करने के लिए 'एवमादीणि' पद दिया है । अतः चोरी का महापाप मलिन कामों से परिपूर्ण होने के कारण सर्वथा त्याज्य है। चोरी करने वाले कौन-कौन ? अदत्तादान के ३० गुणनिष्पन्न नामों का उल्लेख करके शास्त्रकार अब अदतादान रूप पाप कर्म करने वालों का निरूपण करते हैं- . मूलपाठ ___ तं पुण करेंति चोरियं तक्करा परदन्वहरा, छया, कयकरणलद्धलक्खा, साहसिया, लहुस्सगा, अतिमहिच्छ - (त्था) लोभगच्छा, दद्दरओवीलका य, गेहिया, अहिमरा, अणभंजका, भग्गसंधिया, रायदुट्ठकारी य, विसयनिच्छूढलोकबज्झा, उद्दोहकगामघायक-पुरघायग-पंथघायग-आलीवगतित्थभेया, लहुहत्थसंपउत्ता, जुइकरा, खंडरक्ख-त्थीचोर-पुरिसचोर-संधिच्छेया य, गंथिभेदग-परधणहरण-लोमावहार (रा) - अक्खेवी, हडकारका, निम्मदग-गूढचोरक-गोचोरग-अस्सचोरग-दासिचोरा य, एकचोरा, ओकड्ढक-संपदायक-उच्छिपक-सत्थघायक-बिलचोरी - (कोली) कारका य, निग्गाहविप्पलुपगा, बहुविहतेणिक्कहरणबुद्धी, एते अन्ने य एवमादी परस्स दव्वाहि जे अविरया। विपुलबलपरिग्गहा य बहवे रायाणो परधणम्मि गिद्धा, सए य दव्वे असंतुट्ठा, परविसए अहिहणंति ते लुद्धा परधणस्स कज्जे चउरंगविभत्तबलसमग्गा, निच्छियवरजोहजुद्धसद्धिय-अहमहमिति-दप्पिएहिं सेन्नहिं संपरिवुडा पउम (पत्त) - सगडसूइचक्कसागरगरुलबूहातिएहिं अणिएहिं उत्थरंता, अभिभूय हरंति परधणाई। अवरे
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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