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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र लुपणा धणा - किसी के धन या पदार्थ को हजम कर जाने या अपने कब्जे में करने की नीयत से गायब कर देना, पता न चल सके, इस प्रकार से गुम कर देना धन-लोपना है, जो कि अदत्तादान की ही बहन है । अप्पच्चओ – संसार में चोरी करने वाले व्यक्ति का कोई विश्वास नहीं होता, उस पर प्रतीति करके कोई भी जिम्मेवारी का काम नहीं सोंपता । जिसकी चोरी करने की आदत हो, उस पर परिवार व समाज के लोग भी भरोसा नहीं करते । इसलिए अदत्तादान अप्रत्यय का उत्पादक होने से, उसे अप्रत्यय कहना ठीक ही हैं । अवीलो - चोरी दूसरों को भी पीड़ा देती रहती है, और स्वयं चोर के मन को भी बराबर कचोटती रहती है । इसलिए पीड़ा का कारण होने से अदत्तादान को 'अवपीड़' कहना युक्तिसंगत है । २४२ अक्खेवो — चोरी करने वाला प्रायः कई बार दूसरों के माल पर एकदम झपटता है, वह सीधा लपक कर उस पर टूट पड़ता है, इसलिए आक्षेप नामक अवगुण भी अदत्तादान की पूर्व तैयारी के रूप होने से इसे अदत्तादान का पर्यायवाची बताया गया है । खेबो--दूसरे के हाथ से द्रव्य छीन लेना क्षेप है, जो अदत्तादान का ही साथी है । इसलिए इसे क्षेप कहना भी अनुचित नहीं है । विक्खेव - दूसरे के हाथ से द्रव्य लेकर इधर-उधर कर देना या फेंक देना अथवा खुर्द बुर्द कर देना विक्षेप है; जो अदत्तादान का मित्र है । कूडया — कूटता कहते है — बेईमानी को । किसी माल के तौलने - नापने, दिखाने-देने, बेचने - खरीदने में फरेब करना, गड़बड़ करना, मिलावट करना, व्यवहार कूटता के प्रकार चोर, डाकू तो सीधे ही । जालसाजी करना या चकमा देना; ये और इसी तरह हैं । कूटता अदत्तादान से किसी भी तरह कम नहीं है चोरी या डकैती करते हैं, परन्तु ये लोगों की आंखों में पैसा निकलवा लेते हैं, इसलिए कूटता को अदत्तादान की दादी कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं । धूल झौंक कर उनका कुलमसी य - चोरी जैसे धंधे करने वाले व्यक्ति कुल को कलंकित करते हैं, अपने कुल की प्रतिष्ठा पर कालिख पोत देते हैं । इसलिए अदत्तादान कुल पर कालिमा लगाने वाला होने से इसे 'कुलमषी' ठीक ही कहा है । कंखा - मनुष्य विविध प्रकार की महत्त्वाकांक्षाएं तथा बड़ी-बड़ी आशाएं संजोता है, बड़प्पन पाने की भी बड़ी लालसा मन में होती है । जब प्रतिष्ठा पाने, बड़े बनने के लिए साधनों की पूर्ति अपनी न्यायोपार्जित कमाई से नहीं होती तो, वह अन्याय, अत्याचार, शोषण, गबन, रिश्वत, लूट आदि के द्वारा उसकी पूर्ति करता है । इस
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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