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________________ द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव १६६ मान लो, विष्णु दयालु हैं, इसलिए उन्होंने प्राणियों को पैदा किया, तब तो उन्हें दया करके सभी प्राणियों को सुखी, परस्पर सहयोगी और साधनसम्पन्न बनाने चाहिए थे ? उन्होंने दुःखी तथा देव और दानव, नकुल और सर्प, गरुड़ और नाग आदि परस्पर शत्रु जीवों को क्यों बनाया ? इसलिए यह सब कल्पना सत्य से कोसों दूर समझनी चाहिए। ___'पयंपंति पयावइणा इस्सरेण य कयंति केइ-इसके पश्चात् शास्त्रकार ईश्वरकर्तृत्ववाद का उल्लेख करते हैं कि कई दार्शनिकों का कहना है-यह जगत् प्रजापति (ब्रह्मा) तथा महेश्वर ने बनाया है, अथवा प्रभु ईश्वर ने बनाया है। यहाँ वैशेषिक दर्शन का मत देते हैं-जगत् में ७ पदार्थ हैं-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, . समवाय और अभाव । इनमें से अभाव के सिवाय बाकी के ६ पदार्थ सद्भावरूप हैं। सामान्य, विशेष और समवाय ये तीनों पदार्थ नित्य हैं, कर्म अनित्य ही हैं। तथा गुण दो प्रकार के हैं—नित्य और अनित्य । नित्य द्रव्यों में रहने वाले गुण नित्य हैं, और अनित्य द्रव्यों में रहने वाले अनित्य । पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन ये नौ द्रव्य हैं। इनमें से आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन ये ५ द्रव्य नित्य हैं, शेष द्रव्य पृथ्वी, जल, वायु, और अग्नि ये ४ द्रव्य नित्य और अनित्य दो प्रकार के हैं। परमाणुरूप पृथ्वी आदि नित्य हैं और कार्यरूप अनित्य हैं। ... ईश्वरकर्तृत्ववादियों का कहना है कि "अनित्य पर्वतादि पृथ्वी, समुद्र आदि जल, दिखाई देने वाली अग्नि और स्पर्श की जाने वाली वायु ये सब बुद्धिमान (ईश्वर) के बनाये हुए हैं। क्योंकि ये कार्य हैं। जो-जो कार्य होते हैं, वे-वे सब किसी न किसी के द्वारा अवश्य किये (बनाए) हुए होते हैं। जैसे घड़ा, वस्त्र, महल आदि कुम्हार, जुलाहे व मिस्त्री आदि के द्वारा बनाए हुए हैं। पृथ्वी, पर्वत आदि भी कार्य हैं; अतएव वे भी किसी बुद्धिमान के बनाये हुए हैं। वह बुद्धिमान सर्वज्ञ तथा सर्वशक्तिमान है । क्योंकि सारे विश्व के पदार्थों का निर्माण वही कर सकता है, जो उन सबके जनक कारणों का ज्ञाता हो। सर्वज्ञता के बिना विश्व के जनक कारणों का ज्ञान होना असम्भव है । और बिना जाने कोई उनका यथायोग्य संयोग या प्रयोग भी नहीं कर सकता । जैसे कुम्हार को घड़ा बनाने में मिट्टी, पानी, चक्र आदि जनक कारणों का ज्ञान है, उन सबका ज्ञान होने के कारण ही वह उनका यथायोग्य उपयोग कर लेता है, वैसे ही विश्व के कार्यों के लिए उन सबके जनक कारणों का १ इसका विस्तृत वर्णन जानना हो तो स्याद्वादमंजरी, आप्तपरीक्षा, स्याद्वाद रत्नाकर और प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि ग्रन्थ देखें । .. -सम्पादक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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