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________________ १९५४ _श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र आठ माताएं बनाई तथा उन माताओं ने देव,दानव आदि को जन्म दिया; तब विष्णु, ब्रह्मा आदि ने क्या उनके शरीर और आत्मा दोनों को पैदा किया या केवल शरीर को ही ? यदि आत्मा को पैदा किया तो उसका उपादानकारण कौन था ? यदि कहें कि उनकी आत्माएं तो पहले से ही थीं तो प्रश्न होता है, उन आत्माओं को किसने बनाया ? इत्यादिरूप में उत्तरोत्तर इसी प्रकार प्रश्नों की झड़ी एक के बाद एक लगी रहेगी; अत: इसमें अनवस्थादोष उपस्थित होगा। यदि कहें कि विष्णु, ब्रह्मा आदि ने तो सिर्फ उनके शरीर को ही बनाया, उनकी आत्माएं तो अनादिकाल से थीं; तब. हम पूछते हैं कि उन आत्माओं के साथ कर्म लगे हुए थे या नहीं ? यदि कहें कि कर्म लगे हुए नहीं थे, वे तो बिलकुल शुद्ध, कर्मरहित थीं, तब तो उनके साथ कर्म लगा कर उन्हें अशुद्ध करके संसार में विविध योनियों में जन्म देने वाले विष्णु, ब्रह्मा आदि दयालु कैसे हो सकते हैं ? दूसरों को घोर संकट में डालने वाले दयालु, पूज्य और महान् भी कैसे हो सकते हैं ? दूसरा प्रश्न इस सम्बन्ध में यह होता है कि विष्णु ने सृष्टिरचना क्यों की? स्वभाववश की ? क्रीड़ावश की ? इच्छावश की ? या दयालुता से प्रेरित हो कर की ? - यदि स्वभाववश सृष्टिरचना मानें तो यह यथार्थ नहीं है। क्योंकि स्वभाव से जो कार्य होता है, वह सदा होता है, एकसरीखा होता है। जैसे अग्नि स्वभाव से ही दाह उत्पन्न करती है, जब तक अग्नि रहेगी, तब तक दाह उत्पन्न करती रहेगी। इसी प्रकार विष्णु को भी सदा सतत ब्रह्मा आदि की एक-सी उत्पत्ति करते रहना चाहिए । परन्तु ऐसा आप नहीं मानते । विष्णु तो ब्रह्मा को पैदा करके शान्त' हो गए । अत: स्वभाव से सृष्टिरचना मानना ठीक नहीं । यदि क्रीड़ावशात् विष्णु ब्रह्मा आदि को बनाते हैं तो क्रीड़ा तो क्षुद्र प्राणी किया करते हैं । विष्णु तो परमात्मा और आनन्दमय माने जाते हैं, उन्हें क्रीड़ा करने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी ? यदि वे अपनी इच्छावश जगत् की रचना करते हैं तो इच्छा तो कर्मविशिष्ट अज्ञ जीव में होती है। क्योंकि इच्छा कर्म का कार्य है। बिना कर्मोदय के इच्छा नहीं होती। इच्छा मान भी लें तो उसकी वह इच्छा नित्य है या अनित्य ? यदि नित्य हैं तो उसका कार्य भी नित्य निरन्तर होता रहेगा, कभी उस कार्य में विराम नहीं होगा। यदि अनित्य है तो उसका कौन-सा कारण है ? कर्म कारण है या अन्य कोई कारण ? कर्म के सिवाय और कोई कारण हो नहीं सकता। क्योंकि अन्य कोई वस्तु विष्णु के सिवा सृष्टि के आदि में नहीं थी। कर्म को कारण मानने पर विष्णु कर्मविशिष्ट सिद्ध होगा। इस प्रकार के पूर्वोक्त दूषण उपस्थित होंगे। यदि दयालुता से प्रेरित हो कर विष्णु सृष्टि बनाते हैं, तब तो यह कथन भी उपहास का विषय होगा। सृष्टि से पहले जब कोई प्राणी था ही नहीं, तब दया किस पर की गई ?
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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