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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र १८२ सौ कसमें खा लेंगे, झूठे वादे कर लेंगे । इस प्रकार वचन द्वारा बेईमानी करके व्यव - सायी भी असत्यभाषी बन जाता है । कुडतुलकुडमाणी – झूठा तौलने और झूठा नापने वाला वैसे बाहर से तो असत्य बोलता दिखाई नहीं देता, लेकिन माया, कपट और बेईमानी का उसका व्यवहार तथा ग्राहक को तौल नाप में धोखा देने का व्यवहार अहितकर होने से असत्याचरण ही माना जाता है । इसलिए झूठा तौल - नाप करने वाला असत्यवादी कोटि में है । कूडकाहावणोपजीविया – जो लोग झूठे सिक्कों पर ही अपनी रोजी चलाते हैं, वे तो सरासर झूठ का ही व्यवसाय करते हैं । उनके मन में झूठ होता है, उनका व्यवहार भी झूठा होता है। चाहे वे वचन से झूठ न बोलें, या सफाई से अपनी बात को सच्ची सिद्ध करने का प्रयत्न करें, हैं वे असत्यवादी ही । 1 पडगारका कलाया कारुइज्जा — कपड़ा बनाने वाले, स्वर्णकार तथा दर्जी, लुहार, कुंभार, छिपा आदि कारीगर प्रायः बातबात में झूठ बोल जाते हैं । सुनार, दर्जी, जुलाहे आदि अपने ग्राहक से अमुक दिन चीज तैयार करके देने का वादा कर लेते हैं, लेकिन वे उस दिन अपने वचन के अनुसार देते नहीं; रहते हैं । बेचारा ग्राहक हैरान होता है, उसका कपड़ा, सोना लिया जाता है, मेहनताना न ठहराने पर अधिक लेने की अलावा वे अपनी घटिया चीज की भी अत्यन्त तारीफ करके प्रयत्न करते हैं । मतलब यह है कि प्रायः इन लोगों के काम में झूठ और कपट का या वचनभंग का व्यवहार होने से वह असत्यवादिता की कोटि में ही माना जाता है । आगे से आगे रक आदि भी उसमें से चुरा कोशिश करते हैं । इसके अधिक दाम पाने का वंचणपरा - ठगाई करने वाले भी सरासर असत्यभाषी हैं । चारिय चाडुयार- नगर गोत्तिय परिचारगा - वेष बदल कर घूमने वाले, चापलूस, नगररक्षक, कोतवाल आदि और व्यभिचारियों के दलाल -- ये चारों प्रकार के मनुष्य माया और धूर्तता करने में प्रायः सिद्धहस्त होते हैं। वाणी के मायाजाल में फंसा कर सम्बन्धित व्यक्ति से मनमाना पैसा ठगते हैं, उसकी जेब खाली करा लेते हैं, उसकी इज्जत भी मिट्टी में मिला देते हैं । अतः असत्य तो इनकी रग-रग में भरा होता है । दुट्ठवायि-सूयक- अणबल- भणिया- दुष्टों का पक्ष लेने बाले या बात-बात में अपशब्द बोलने वाले, चुगलखोर, बलपूर्वक कर्ज लेने वाले तथा हमें द्रव्य दो, इस प्रकार की धमकीभरे शब्द कहने वाले; ये चारों ही असत्य के पिटारे हैं । इन्हें सत्यभाषण का कोई विवेक ही नहीं रहता । इसलिए इनकी असत्यवादिता स्पष्ट है । पुव्वकालियवयणदच्छा–किसी के कहने से पहले ही उसके अभिप्राय को जान कर कहने में कुशल अथवा किसी की भूतकालीन बात को कहने में चतुर लोग
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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