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________________ द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव १८१ चोरा---चोरों का काम ही झूठ से चलता है। झूठ और चोरी का तो परस्पर चोली-दामन का-सा नाता है । इसलिए चोरों को असत्यभाषी कहा गया है। ___ चारभडा-गुप्तचर और जासूस तो अपना रूप, रंग, वेषभूषा, भाषा ही बदल लेते हैं, असत्य का सहारा ले कर ही वे किसी गुप्त बात का पता लगाते हैं। इसलिए असत्य उनका साथी होता है। भाट लोग भी युद्ध में शौर्यगाथा गाते हैं, तब बहुत ही अतिशयोक्ति करके बढ़ा-चढ़ा कर प्रशंसा करते हैं, सेना को उत्तेजित करते हैं, उनके शब्दों में भी सत्यता नहीं होती। खंडरक्खा—चूंगी, कर, या जकात के वसूल करने वाले प्रायः लोगों को धमका कर एवं असत्य बोल कर रिश्वत के रूप में उनसे पैसा ऐंठते हैं। वचन की प्रामाणिकता उनमें प्रायः नहीं होती, इसलिए उन्हें भी असत्यभाषी की कोटि में बताया है। जियजयकारा हारे हुए जुआरियों की मनोवृत्ति किसी भी तरह से झूठा दाव लगा कर पुनः जीतने की होती है । अथवा अपनी प्रतिष्ठा समाज में रखने के लिए वह जुए में सारा धन खो देने पर भी पूछने पर कहेगा- "मेरे पास धन की क्या कमी है ?" मतलब यह है कि अपनी इज्जत बचाने के लिए जुआरी भी प्रायः असत्य का आश्रय लेते हैं; इसलिए उन्हें असत्यभाषी कहा गया है । - गहियगहणा—गिरवी रखने वाले व्यक्तियों की नीयत प्रायः यही रहती है कि सौ रुपये के माल को ग्राहक पचास रुपये में गिरवी रख जाय ; इसलिए वह गिरवी रख जाने वाले के साथ झूठ बोलता है, फिर ब्याज जोड़ते समय भी प्रायः झूठ का सहारा लिया करता है; इसलिए इसे भी असत्यभाषी कहा गया है। कक्कगुरुगकारगा–मायापूर्वक बढ़ाचढ़ा कर बोलने वाले, चापलूस, वंचक, ठग आदि तो असत्य को ही अपना मित्र बनाते हैं। इसलिए उनकी असत्यभाषिता में कोई सन्देह ही नहीं है। कुलिंगी-धर्म के नाम पर दूसरों के साथ धोखेबाजी करने वाले लोग साधुसंत का बाना पहन कर या साधुवेष धारण करके दुनियाभर की गप्पें लगा कर लोगों से पैसा बटोरते हैं, सम्मान प्राप्त करते हैं, ऐश-आराम के साधन प्राप्त कर लेते हैं। इसलिए वे तो असत्य की खान हैं ही। .. उवहिया–सोना बना देने या नोट बढ़ा देने का कह कर चकमे में डालने वाले या बहुरूपिया बन कर लोगों को वाग्जाल में फंसाने वाले मायाचारी लोग तो सरासर असत्यभाषी हैं ही। ___ वाणियगा--व्यापार करने वाले या विविध प्रकार का व्यवसाय करने वाले, कारखानेदार आदि लोग भी धन के लोभ में प्रायः असत्य का सहारा लेते हैं । वे दिखाएँगे एक चीज,देंगे दूसरी और वह भी खराब चीज,चीज के दाम बहुत बढ़ाकर कहेंगे,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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