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________________ १७७ द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव और औषधियों के प्रयोग करने व परस्त्रीगमन आदि बहुत से पापकर्मों के उपदेश तथा छल से शत्रु सेना की ताकत तोड़ देने या उसे कुचल डालने के, जंगल में आग लगाने तथा तालाब सूखाने के, बुद्धि के विषय विज्ञान आदि अथवा बुद्धि एवं स्पर्श आदि विषयों के विनाश के, वशीकरण, उच्चाटन आदि के तथा भय, मृत्यु, क्लेश और दोष के जनक, बहुत क्लिष्ट भावों से मलिन, प्राणियों के घात और उपघात करने वाले वचन द्रव्य से तथा तथ्यरूप से सच्चे होने पर भी भाव से उन-उन प्राणियों का घात करने वाले होने से असत्य ही हैं, जिन्हें मिथ्यावादी बोलते हैं। तथा पूछे जाने पर या बिना पूछे ही दूसरों के काम की व्यर्थ चिन्ता में डूबे रहने वाले, बिना बिचारे बोलने वाले, बिना ही मतलब के एकदम उपदेश देने लगते हैं कि ऊंटों, गाय-बैलों एवं नील गायों (रोझों) का दमन करो, वश में करो, परिपक्व उम्र के तरुण घोड़े, हाथी, बैल, मैंढे और मुर्गे खरीदो, खरीदवा लो तथा बेच दो। कुटुम्बीजनों के लिए भोजन बनाओ।' उनको यह शराब आदि पेय वस्तु दे दो, पिला दो, तथा ये दासी-दास, नौकर और हिस्सेदार, बाहर भेजे जाने वाले गुमाश्ते या नौकर,कर्मचारी और सेवक, कुटुम्बी तथा रिश्तेदार क्यों बेकार बैठे हैं ? आपकी पत्नियाँ काम करें, घने जंगल, धान आदि बोने के खेत, बिना जोती हुई भूमि और घोर जंगल बहुत लंबे-लंबे घने घास से भर गए हैं, इन्हें जला डालो और कटवा डालो ! कोल्हू आदि यन्त्रों, कुडों आदि बर्तनों तथा गाड़ी, हल आदि बहुत से उपकरणों-साधनों के लिए तथा और भी अनेक कामों के लिए वृक्षों को काट लो। गन्नों को काट लो या उखाड़ लो, तिलों को पील डालो, मेरे घर के लिए ईटें पकवा लो, खेतों को जोतो और जुतवाओ, जंगल के प्रदेशों में झटपट लम्बी-चौड़ी सीमा वाले नगर, गाँव, खेड़े और कस्बे बसाओ। खिले हए, पके हुए फलों,फलों और कन्दमूलों (आलू, सूरण आदि कंदों और गाजर-मूली आदि मूलों) को उखाड़ लो या चुन लो और अपने सगे-सम्बन्धियों के लिए इन्हें इकट्ठ कर लो। शालि धान, गेहूँ आदि अन्न तथा जौ काट लो, इन्हें बैलों से पैरवा लो और साफ करवा लो। इनका भूसा अलग करवा लो और जल्दी कोठार-कोठे में भर दो । तथा छोटे, मंझले और बड़े जहाजों के सार्थवाहों
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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