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________________ १७६ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र में हिंसा का उपदेश देते हैं । मृग आदि पशुओं को फंदे में फंसाने वाले पारघियों को खरगोश, प्रशय और रोहित नामक जंगली जानवरों को बतलाते हैं । बाज आदि द्वारा पक्षियों का शिकार करने वाले बहेलियों को तीतर, बतक, बटेर, कपिंजल और कबूतर आदि पक्षियों को बताते हैं । मर्छुओं को मछली, मगर, कछुए आदि बतलाते हैं । और धीवरों को शंख, अंकरत्न और कौड़ियां बताते हैं, सपेरों को अजगरों, दुमु ही, साँपों, मण्डलाकार सर्पों, फणधर सर्पों और बिना फण के सर्पों की सूचना देते हैं । शिकारियों को चन्दनगोह, कांटेदार गोल शैले और गिरगिट बतलाते हैं, फंदे द्वारा पशुओं को पकड़ने वालों को हाथियों के झुंड और बंदरों के टोले बताते हैं, पक्षियों को पालने वालों को तोते, मोर, मैना, कोयल और हंसों के झुंड और सारस बतलाते हैं, पशुपालकों को मारने-पीटने, बांधने और पीड़ा देने का उपदेश देते हैं - अभ्यास कराते हैं तथा चोरों को धन, धान्य, गायों- बैलों और भेड़बकरियों का पता बताते हैं, गुप्तचरों- भेदियों या जासूसों को गांवों, खानों, नगरों तथा बड़ी मंण्डियों ( पत्तनों) का भेद बताते हैं । गांठकटों-गिरहकटों को रास्ते के परले सिरे पर या रास्त े के बीच में राहगीरों को लूटने का निर्देश करते हैं, नगररक्षक कोतवाल आदि को की गई चोरी की खबर देते हैं तथा ग्वालों को पशुओं के कान आदि काटना या गर्म लोहे आदि से दाग देना, उन्हें खस्सी या बधिया करना, फूंका लगाना, दुहना, जी आदि खिलाकर पुष्ट बनाना, बछड़े को अपनी मां से अलग करके दूसरी गाय के साथ कर देना, हैरान करना, गाड़ी आदि को खींचना, बोझ लादना आदि बहुत से उपाय बतलाते हैं । खान के मालिकों को गेरु आदि, या सोना, चांदी, लोहा आदि धातुओं, चन्द्रकांत आदि मणियों शिला अथवा मेनसिल, मूंगा और रत्न की खानों का पता बतलाते हैं । ▾ मालियों को फूलों के तोड़ने या गूंथने की विधि और फलों को उपजाने, पाने आदि की विधि बतलाते हैं । तथा जंगलों में भटकने वाले भीलों आदि को मधुमक्खियों के बहुमूल्य छत्ते दिखला देते हैं । मारण, मोहन, उच्चाटन आदि के लिए लिखित यंत्रों या पशओं आदि को पकड़ने के यंत्रों, संखिया आदि हलाहल विषों, गर्भपात आदि के लिए वनस्पति की जड़ या अन्य जड़ीबूटियों के प्रयोग, मन्त्रादि द्वारा नगर में क्षोभ या फुट पैदा कर देने अथवा मंत्रबल से धन आदि के खींचने, द्रव्य और भाव से वशीकरण मंत्रों
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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