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________________ १७८ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र को तथा शिशुसमूहों को खत्म कर दो । सेना चढ़ाई करने के लिए बाहर निकले, संग्राम-स्थल की ओर कूच करे और घोर युद्ध हों। गाड़ी, रथ वगैरह सवारियां हांको । यज्ञोपवीतसंस्कार, चूडाकर्म संस्कार, या मुंडन संस्कार, विवाह और यज्ञ अमुक दिवस, करण, मुहूर्त, नक्षत्र और तिथि में हो । आज आमोद-प्रमोदपूर्वक बहुत-सी मिठाइयां आदि खाने और मदिरा आदि पीने की वस्तुओं के भोज के साथ सौभाग्यवृद्धि तथा पुत्रादि की प्राप्ति के लिए वधू आदि का स्नान हो तथा डोरे बांधने आदि विधियों वाला कौतुक हो । सूर्य और चन्द्र के ग्रहण तथा दुःस्वप्न आदि के होने पर विविध मन्त्रादि से संस्कारित जल से स्नान और शांतिकर्म करो। अपने कुटुम्बियों की तथा अपने जीवन की रक्षा के लिए आटे आदि के बने हुए प्रतिशीर्षक (सिर) चण्डी आदि देवियों के भेंट चढ़ाओ । और अनेक प्रकार की औषधियों, मद्य, मांस, मिठाई, अन्न, पान, पुष्पमाला, चंदनादि का लेपन, उवटन, दीपक, सुगन्धित धूप तथा फूलों और फलों से परिपूर्ण विधि से बकरे आदि पशुओं के सिरों की बलि दो । नाना प्रकार की हिंसा करके अशुभसूचक उत्पात, प्रकृतिविकार, बुरे स्वप्न, बुरे शकुन, क्रूर ग्रहों की चाल, अमंगलसूचक अंगस्फुरण इत्यादि के फल को नष्ट करने के लिए प्रायश्चित्त करो | अमुक की आजीविका नष्ट कर दो ! किसी को कुछ भी दान मत करो | अच्छा हुआ, मारा गया ! अच्छा हुआ, काट डाला गया ! अच्छा हुआ, टुकड़े-टुकड़े किया गया ! इस प्रकार बिना ही पूछे उपदेश करते या कहते हुए मनुष्य मन से, वाणी से और कर्म से द्रव्य से सत्य होते हुए भी प्राणातिपात का कारण होने के भाव से इस प्रकार असत्य भाषण करते हैं । (वे कौन हैं ?) हिंसक और अहिंसक या कहने योग्य और न कहने योग्य वचनों के रहस्य को समझने में अकुशल, पाप में तत्पर, अनार्य, मिथ्याशास्त्रों की आज्ञा के अनुसार चलने वाले, असत्य धर्म-कर्म में लीन, आत्मगुणों का ह्रास करने वाली पापोत्तोजक झूठी कहानियों में ही आनन्द मानने वाले लोग नाना प्रकार से मिथ्याभाषण करके संतुष्ट होते हैं । व्याख्या प्रस्तुत सूत्रपाठ में दो द्वारों का एक साथ ही निरूपण किया गया है— 'असत्य भाषण कौन-कौन करते हैं और किस प्रयोजन से व किस प्रकार से करते हैं ?' मतलब यह है कि शास्त्रकार ने इस सूत्रपाठ में असत्य बोलने वालों तथा असत्य बोलने के
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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