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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
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तीतर, बतक और बटेर पक्षियों व (कविजलकवोयके) कपिजलों और कबूतरों को (साहिति) बतलाते हैं, (य) और (मच्छियाणं ) मछुओं – मच्छीमारों को, (झसमगरकच्छभे) मछली, मगरमच्छ और कछुए ( साहिति) बतलाते हैं (य) और (मगराणं
for वा ) धीवरों या जलचर जन्तुओं को खोजने वालों को ( संखंके) शंख और अंक नामक मणियां, और ( खुल्लए) कौड़ियाँ (साहिति) बताते हैं (य) तथा (वाल - वीणं या वालवाणं) सपेरों को ( अयगर गोणसमंडलिदव्वीकरे) अजगरों, दुमु ही (सर्प), टेढ़े चलने वाले मंडली सर्पों, फण वाले सांपों, (य) और ( मंडली) जिनके फण कमल की कली की तरह मिल जाते हैं, ऐसे सर्पों को (साहिति) बताते हैं, (य) और (लुद्धगाणं) शिकारियों को (गोहा) चन्दन गोह (य) और ( सेहगसल्लगसरडगे ) सेहों, कांटेदार जानवरों सैलों, और गिरगिटों को (साहिति) बतलाते हैं । (य) तथा ( पासियाणं) फंदे द्वारा पशु पकड़ने वाले पासियों को ( गजकुलवानरकुले) हाथियों के झुंड और बंदरों के टोले (साहिति) बताते हैं, (य) और ( पोसगाणं ) पक्षियों को पालने वालों को (सुकबरहिणमयणसालको इलहंसकुले) तोतों, मोरों, मैनाओं, कोयलों और हंसों के झुंडों (य) तथा ( सारसे) सारसों को (साहिति) बतलाते हैं । (च) और (गोमियाणं ) गुप्तिपालकों बंदीवानों या पशुरक्षकों को, ( वधबंधजायणं) पीटने, बांधने और पीड़ा देने का ( साहिति) उपदेश देते हैं— अभ्यास कराते हैं । (A) और (तक्कराणं ) चोरों को (धणधन्नगवेलए) धन, धान्य, गायों, बैलों और भेड़बकरियों का (साहिति) पता बताते हैं (य) और (चारियाणं) गुप्तचरों, भेदियों या जासूसों को, (गामागरनगरपट्टणे) गाँवों, खानों, नगरों तथा पत्तनों (बड़ी मंडियों) का (साहिति) भेद बताते हैं । (य और (गंठिभेयाणं ) गांठ खोलने वालों या गिरहकटों को, (पारघाइयपंथघाइयाओ) रास्ते के परले सिरे पर व रास्ते के बीच में पथिकों को लूटने की ( साहिति) सूचना देते हैं । (य तथा ( नगरगोत्तियाणं ) नगररक्षकोंकोतवालों आदि को, ( कयं ) की गई (चोरियं) चोरी की (साहिति) सूचना देते हैं, (य) तथा ( गोमियाणं) ग्वालों को (लंछणनिल्लंछणधमणदुहणपोसणवणणदुमणवाहणादिया) पशुओं के कान आदि काटना या गर्म लोहे आदि से दाग देना, उन्हें खस्सी करना (बधिया बनाना), फूंका लगाना, दुहना, पुष्ट करना, बछड़े को दूसरी गाय के साथ लगाना, (वंचन करना ), हैरान करना, गाड़ी आदि को खींचना, बोझ लादना इत्यादि ( बहूणि) बहुत से ( साहिति) उपाय बतलाते हैं । (य) और ( आगरीणं ) खान के मालिकों को (धातुमणिसिलप्पवालरयणागरे ) गेरु, लोहा, सोना, चांदी, तांबा आदि धातुओं, चन्द्रकान्त आदि मणि, शिला अथवा मैनसिल, मूंगे और हीरे, पन्ने, माणिक्य आदि रत्नों की खानों का ( साहिति) पता बतला देते हैं । (य) और (मालियाणं ) मालियों को ( पुप्फविह) फूलों के तोड़ने या गूंथने की विधि, ( फलविहि) फलों को उपजाने व पकाने की विधि, (साहिति) बतलाते हैं, (य) तथा