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________________ १७० श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (वणचराणं) भील आदि जंगल में घूमने वाले वनचरों को (अग्घमहुकोसए) बहमूल्य शहद के छत्ते (साहिति) बतलाते हैं, (जंताई) (मारण-मोहन-उच्चाटन आदि के लिए यंत्रलेखन (बिसाई) विषों (मूलकम्म) गर्भपात आदि के लिए जड़ी बूटियों या जड़ों के प्रयोग से सम्बन्धित, (आहेवणआभियोगमंतोसहिप्पओगे) मंत्रादि द्वारा नगर में क्षोभ, या फूट पैदा कर देना, अथवा धनादि को मंत्र के जोर से खींच लेना, द्रव्य और भाव से वशीकरण मंत्रों व औषधियों के प्रयोगरूप (चोरियपरदारगमण - बहुपावकम्मकरणं) चोरी, परस्त्रीगमन आदि बहुत से पापकर्मों के करने की प्रेरणा से सम्बन्धित, (उक्खंधे) छल से शत्रु सेना की ताकत तोड़ देने या कुचल डालने, (वणदहण-तलाग-भैयणाणि) जंगल में आग लगाने तथा तालाब सूखाने के सम्बन्ध में (बुद्धिविसयविणासणाणि) बुद्धि तथा स्पर्श आदि विषयों के विनाशक, (वसीकरणमादियाइं) वशीकरणादि रूप (भयमरणकिलेसदोसजणाणि) भय, मृत्यु, क्लेश और दोष के जनक, (भावबहुसंकिलिट्ठमलिणाणि) बहुत संक्लिष्ट भावों से मलिन, (भूतघातोवघातियाइ) प्राणियों के घात और उपघात करने वाले सच्चाईपि) सच्चे (तथ्ययुक्त) होने पर भी (ताई) उन (हिंसकाई) हिंसाजनक (वयणाई) वचनों को (उदाहरंति) बोलते हैं । (य) और (पुट्ठा) पूछे जाने पर (वा) अथवा (अपुट्ठा) बिना पूछे ही (परतत्तियवावड़ा) दूसरों के काम की व्यर्थ चिता में डूबे रहने वाले (असमिक्खियभाषिणो) बिना सोचे विचारे बोलने वाले (सहसा) अकस्मात-एकदम बिना मतलब के (उवदिसंति) उपदेश देने लगते हैं किं-(उट्टा) ऊंटों, (गोणा) गायबैलों, (गवया) रोझों या नीलगायों का (दमंतु) दमन करो वश में करो, (परिणतवया) वयस्क तरुण (अस्सा) घोड़ों, (हत्थी) हाथियों (य) और (गवेलककुक्कुडा) गायों, मेंढ़ों और मुर्गों को (किज्जंतु) खरीदो, (य) और (किणावेध) खरीदवालो, (विक्केह) बेच दो (च) (सयणस्स) अपने पारिवारिक लोगों के लिए (पयह) पकाओ, (देह) उनको देदो, (पियय) शराब आदि पीओ, पिलाओ, (दासीदास - भयकभाइल्लका) दासी, दास, नौकर तथा हिस्सेदार, (य) और (सिस्सा) शिष्य-चेले, (पेसकजणो) बाहर भेजे जाने वाले नौकर, (कम्मकरा) कर्मचारी, (य) तथा (किंकरा) सेवक (य) एवं (सयणपरिजणो) स्वजन-कुटुम्बोजन तथा परिजन-सगेसम्बन्धी (कोस) क्यों, (किसलिए) (अच्छंति) बेकार बैठे हैं ? (भे) आपको, (भारिया) पत्नियाँ (कम्म) काम (करेन्तु) करें। (गहणाई वणाई) घने जंगल, (खेत्तखिलभूमिवल्लराई) अनाज बोने के खेत, बिना जोती हूई भूमि और वल्लर-घोर जंगल या मैदान, (उत्तणघणसंकडाइं) बहुत लम्बे लम्वे और घने घास से भर गये हैं, (डझंतु) इन्हें जला डालो, (य) तथा (सूडिज्जंतु) कटवा डालो। (जंतभंडाइयस्स) कोल्हू आदि यंत्रों, कुंडी आदि बर्तनों अथवा गाड़ी आदि बनाने, (य) तथा (बहुविहस्स उवहिस्स) हल आदि बहुत प्रकार के उपकरणों साधनों के (अट्ठाए) प्रयोजन के लिए (रुक्खा)
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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