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द्वितीय अध्ययन : मृषावाद-आश्रव
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नामक असत्य है । अथवा शास्त्र में निरूपित किसी वस्तु का सर्वथा अपलाप करना भी अवलोप है । यह भी भयंकर असत्य है । सामान्य रूप से असत्य बोलने की अपेक्षा सैद्धान्तिक असत्य ज्यादा भयंकर होता है । क्योंकि उससे अनन्तकाल तक संसार के जन्ममरण के चक्र में घूमना होता है । शास्त्र की यदि कोई बात समझ में न आती हो तो 'तत्त्वं केवलिगम्यं' कहकर उसे छोड़ देना चाहिए । मगर शास्त्रविहित वस्तुका सर्वथा लोप या निषेध कर देना, यह असत्य की कोटि में माना जाएगा ।
अगाई -- इस प्रकार पूर्वोक्त रूप से असत्य के ३० नामों का उल्लेख शास्त्र कार ने किया है । साथ ही 'अणेगाई' शब्द से यह भी स्पष्ट अभिव्यक्त कर दिया है कि असत्य के इस प्रकार के और भी अनेक नाम हो सकते हैं, और वे हैं भी । असत्यवादी कौन और किस प्रयोजन से ?
३० नामों का स्पष्ट उल्लेख कर देने के बाद
इस तरह नाम द्वार में असत्य
अब शास्त्रकार यह बतलाते हैं कि असत्य कौन - कौन बोलते हैं और किस प्रयोजन से व किस प्रकार से बोलते हैं ?
मूलपाठ
तं च पुण वदंति केइ अलियं पावा, असंजया, अविरया, कवड - कुटिल - कडुय चडुलभावा, कुद्धा, लुद्धा, भया य, हस्सट्टिया य, सक्खी, चोरा, चारभडा, खंडरक्खा, जियजयकारा य, गहियगहणा, कक्क- गुरुगकारगा, कुलिंगी, उवहिया, वाणियगा य, कूडतुलकूडमाणी, कूडकाहावणोपजीविया, पडगारका कलाया, कारुइज्जा, वंचणपरा, चारिय-चाटुयार - नगरगोत्तिय परियारगा, दुट्ठवायिसूयक - अणबल - भणिया य, पुव्वकालियवयणदच्छा, साहसिका, लहुस्सगा, असच्चा, गारविया, असच्चट्टावणाहिचित्ता, उच्चच्छंदा, अणिग्गहा, अणियता, छंदेण मुक्कवाया भवंति अलियाहि जे अविरया ।
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अवरे नत्थिकवाइणो वामलोकवादी भांति-सुण्णं ति, नत्थि जीवो, न जाइ इह परे वा लोए, न य किंचिवि फुसति पुन्नपा, नत्थि फलं सुकयदुक्कयाणं, पंचमहाभूतियं सरीरं भासंति ह ! वातजोगजुत्त । पंच य खंधे भरांति केई, मरणं च मणजीविका वदंति, वा उजीवोत्ति एवमाहंसु, सरीरं सादियं सनिधणं इहभवे