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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
एकान्त दृष्टि से कथन करना भी विपक्ष असत्य है। जैसे किसी ने कह दिया'दान मत करो । क्योंकि दान पुण्यवर्द्धक है और पुण्य सर्वथा हेय है, उसे छोड़े बिना मोक्ष नहीं होगा।' इस वचन में पुण्य एवं दान का सर्वथा. निषेध ऐकान्तिक है, अनेकान्त सिद्धान्त का विरोधी है, सत्य का विपक्षी है। इसलिए यह विपक्ष वचन असत्यरूप है । आत्मा में तीन परिणतियाँ (भाव या परिणाम) होती हैं—-शुद्ध, शुभ और अशुभ । शुद्ध परिणति तब होती है, जब आत्मा आत्मस्वरूप के ही मननचिन्तन-ध्यान में तल्लीन रहता है । जब आत्मा परोपकार, दान, हितोपदेश. आदि शुभ कार्यों में लगा रहता है तब शुभ परिणति होती है, और जब आत्मा आर्त-रौद्रध्यान में तथा इन्द्रिय-विषयों में मग्न रहता है तब अशुभपरिणति होती है। जब तक आत्मा में शुद्ध वीतराग परिणति न हो, तब तक शुभ परिणति में उसे स्थिर रखना ही श्रेयस्कर है । अन्यथा वह शुद्ध में जायगा नहीं, शुभ से रोक रहे हो, तब अशुभ परिणति के सिवाय कहां जाएगा? इसलिए दान-पुण्य आदि का सर्वथा ऐकांतिक निषेध कर देना, विपक्ष नामक असत्य वचन है। इसलिए निश्चय और व्यवहार दोनों नयों को लक्ष्य में रखकर वचन बोलना सत्य है। जहां दोनो में से एक के प्रति. भी लक्ष्य न रखा जाय या सिर्फ एक को लेकर ही कथन किया जाय, वहाँ एकान्त पक्ष का आश्रय होने से विपक्ष नामक असत्य है । - अवहीयं या उवहीयं-दुर्बुद्धि रखकर वचन बोलना अपधीक नामक असत्य . है । दुर्बुद्धि रखकर किसी वचन को कहने से वक्ता की दुर्बुद्धि का पता चल जाता है। दुर्बुद्धिपूर्वक वचन बोलना दूसरे के लिए हितकर नहीं होता, इसलिए वह असत्यरूप होता है। इसी कारण अपधीक नामक वचन को असत्य में बताया है। अथवा उपधीक रूप भी है; जिसका अर्थ होता है-उपधि यानी माया का आधारभूत जो वचन हो । मायापूर्वक वचन बोलने से सुनने वाले को उस पर अविश्वास, शंका और असद् भाव पैदा होते हैं। किसी-किसी प्रति में 'आणाइयं' पाठ भी मिलता है। जिसका अर्थ होता है-वीतराग जिनेन्द्रदेव की आज्ञा का उल्लंघन करने वाला वचन कहना 'आज्ञातिग' नामक असत्य है । वीतराग की आज्ञा जिन कार्यों को करने की है, उनका उल्लघन करना, शास्त्रीय बातों का मनमाना सिद्धान्त-विरुद्ध अर्थ करना, एक तरह से असत्य रूप होने से 'आज्ञातिग' को भी असत्य का साथी माना गया है।
उवहि असुद्ध-उपधि यानी माया से अशुद्ध कथन उपध्यशुद्ध कहलाता है । छल कपट करके शब्द और अर्थ दोनों ही अशुद्ध बोलना असत्यरूप होने से उपध्यशुद्ध वचन को भी असत्य का सहचारी मान लिया है। अशुद्ध शब्द प्रयुक्त होने पर अर्थ का अनर्थ हो जाता है, और अशुद्ध अर्थ कहना तो स्पष्ट रूप से हानिकारक है ही।
अवलोवो-विद्यमान वस्तु को लोपरूप-अभाव रूप में कथन करना अवलोप